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ऽष्टमोऽध्यायः
Imentatuswwulummamwamirronunam
शाखयोश्चन्द्रसूयौं च त्रिमूर्तिश्चोत्तरङ्गके ।
उदुम्बरे स्थितं यक्ष-मश्विनावद्ध चन्द्र के ॥७॥ द्वारशालाओं में चंद्र और सूर्य, उनरंग में त्रिमूति ( ब्रह्मा, विष्णु और शिव ), देहली में यक्षों और अर्धचंद्र (शंखावटी) में दोनों अश्विनीकुमारों का न्यास करें ।।७।।
कौलिकायां धराधार क्षिति चोचामपसके ।
स्तम्भेषु पर्वतांश्चैष-माकाशं च करोटके ॥७६।। कोलिका में धराधर, उत्तानपट्ट ( बडा पाट ) में क्षिति, स्तंभ में पर्वत और मूबद में माकाश, इन देवों का न्यास करें ॥७६||
मध्ये प्रतिष्ठषेद् देवं मारे जाह्नवीं तथा । शिखरस्योरुभाषु पञ्च पञ्च प्रतिष्ठयेत् ।।७७॥ ब्रह्मा विष्णुस्तथा पूर्य ईश्वरी च सदाशियः ।
शिखरे चेश्वरं देवं शिखायां च सुराधिपम् ॥७॥ गर्भगृह में स्वदेव, मगर मुखबाली नाली में गंगाजी, शिखर के उरुगों में ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य, पार्वती और सदाशिव, इन पांच २ देवों का त्यास करके पूजन करें। शिखर में ईश्वर देवका और शिखा सुराधिप (इन्द्र) का न्यास करें 11७७-७८॥
ग्रीवायामम्बरं देव-मण्डके च निशाकरम् ।
यमार्श पनपत्रे च कलशे च सदाशिवम् ||६॥ शिखर को श्रीवा में अंबरदेव, शृगों में तथा प्रामालसार में निशाकर (चंद्रमा }, पात्र और पशिला में पाक्ष देव, और कला में सदाशिव, इन देवों का न्यास करें ॥७॥
सद्यो वामस्तथाधोर-स्तत्पुरुष ईश एव च । कर्णादिगर्भपर्यन्त पञ्चाङ्ग तान् प्रतिष्ठयेत् ।।८०॥
इति स्थावर प्रतिष्ठा। सद्य, वामन, अधोर, तत्पुरुष और ईश, इन पांच देवों का कोने से लेकर गर्भपर्यन्त पांच अंगों में ( करणे, प्रतिरथ, रथ, प्रतिभद्र और मुखभद्र में ) न्यास करें11८०॥ प्रतिष्ठितदेव का प्रथम दर्शन--
प्रथमं देवतादृष्टे-दर्शयेदन्तर्धाहितम् । विप्रकुमारिका वास्तु-ततो लोकान् प्रदर्शयेत् ।।१।।