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प्रासादमाखने
प्रतिष्ठा के नक्षत्र
प्रतिष्ठा चोखरामूल पार्द्रायां च पुनर्वसौ ।
पुष्ये हस्ते मृगे स्वातौ रोहिण्यां श्रुतिमैत्रमे ॥३॥ तीन उत्तरा नक्षत्र, मूल, पा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, मृगशीर्ष, स्वाति, रोहिणी, श्रवण और अनुराधा, ये नक्षत्र देव प्रतिष्ठा के कार्य में शुभ हैं ।।३।। प्रतिष्ठा में वर्जनीय तिथि
तिथिरिक्तां कुजं धिप्ण्यं क्रूरविद्धं विधु तथा ।
दग्धातिथिं च गण्डान्तं चरभोषग्रहं त्यजेत् ॥३६।। रिक्तातिथि, मंगलवार, क्रूरग्रह से वेधित अथवा युत नक्षत्र और चंद्रमा, दग्यातिथि, मक्षत्र, मास, तिथि और लग्न आदिका गंडांतयोग, चर राशि और उपग्रह ये सब प्रतिष्ठा कार्य में वर्जनीय हैं ॥३६॥
सुदिने शुभनक्षत्रे लग्ने सौम्यथुतेक्षिते ।
अभिषेकः प्रतिष्ठा च प्रवेशादिकमिध्यते ॥४०॥ शुभदिन में, शुभनक्षत्रमें, शुभलग्नमें, शुभग्रह लग्न में हों अथवा लग्न को देखते हों, ऐसे समय में राज्याभिषेक, देवप्रतिष्ठा और गृह प्रवेश प्रादि शुभकार्य करना चाहिये ।।४।। प्रतिष्ठा मण्डप----
प्रासादाने तथैशान्ये उत्तरे मण्डपं शुभम् । त्रिपञ्चसप्तनन्दैका-दशविश्वकरान्तरे ॥४१॥ मण्डपः स्यात् करैरष्ट--दशसूर्यकलामितैः । षोडशहस्ततः कुण्ड-शादधिक इष्यते ।।४२|| स्तम्भैः षोडशभियुक्तं तोरणादिविराजितम् ।
मण्डपे वेदिका मध्ये पचाष्टनवकुण्ड कम् ॥४३॥ प्रासाद के प्रामे, तथा ईशानकोने में प्रथवा उत्तर दिशा में प्रतिष्ठा का मंडप बनाना शुभ है । यह मंडप तीन, पांच, सात, नव, ग्यारह अथवा तेरह हाथ तक प्रासाद से दूर रखना चाहिये । तथा पाठ, दस, बारह अथवा सोलह हाथ के मान का समचोरस बनाना चाहिये। एवं कुण्डों को विशालता के कारण सोलह हाथ से बड़ा भी मंडप कर सकते हैं। यह मंडप