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Sष्टमोऽध्यायः
अन्यदोष फल
द्वारहीने
हने नलीहीने पदे स्थापिते स्तम्भे महारोगं
द्वार मान में हीन हो तो नेत्र की हानि, नाली स्तंभ पदमें रखा जाय तो महारोग होता है ॥२२॥
धनक्षयः । विनिर्दिशेत् ॥ २२ ॥
(जलमार्ग) होन हो तो धन का क्षय और
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स्तम्भच्यासोदये हीने कर्त्ता तत्र विनश्यति । प्रासादे पीठहीने तु नश्यन्ति गजवाजिनः ||२३||
स्तंभ का मान विस्तार में अथवा उदय में हीन हो तो कर्ता का विनाश होता है। 'प्रासाद की पीठ मानमें होन हो तो हाथी घोड़ा प्रावि बाहनों की हानि होती है ||२३|| रथोपरथहीने तु प्रजापीडां विनिर्दिशेत् ।
कर्णहीने सुरागारे फलं क्वापि न लभ्यते ||२४|
प्रासाद के रथ श्रीर उपरय प्रादि अंग मानमें हीन हो तो प्रजा को पीड़ा होती है । यदि कोना मानमे होन हो तो पूजन का फल कभी भी नहीं मिलता || रक्षा
जङ्घाहीने हरेद् बन्धून् कर्तृकारापरादिकान् । शिखरे दीनमाने तु पुत्रपौत्रधनचयः ||२५||
प्रासाद को जंघा प्रमाण से हीन हो तो करने कराने वाले और दूसरे की हानि होती है। ओ शिखर प्रमाण से न्यून हो तो पुत्र, पौत्र और धनकी हानि होती है ।। २५ ।।
प्रतिदीर्घे कुलच्छेदो ह्रस्वे व्याधिर्विनिर्दिशेत् । rearvartataaurta सुखदं सर्वकामदम् ||२६||
शिखर यदि मान से अधिक लंबा हो तो कुल को हानि होती है और मान से छोटा होवे सो रोग उत्पन्न होते हैं । इसलिये शास्त्र में कहे हुए मानके अनुसार ही प्रासाद बनायें तो यह सर्व इच्छित फलको देनेवाला होता है || २६॥
जगत्यां रोपयेच्छाला शालायां चैत्र मण्डपम् । मण्डपेन च प्रासादो यस्तो दोषकारकः ||२७||
इति दोषाः ।
जगती में शाला ( चौकी मंडप ) बनाना, उस शाला में मंडप और भंडप में प्रासाद ग्रस्त हो तो दोषकारक है ॥२७॥