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सप्तमोऽध्यायः
प्रथम सवरणा सोलह कूट और पांच घंटाकलश वाली है । तथा कर्ण और उनम के के ऊपर सल भाग के सुल्य (पाठ) सिंह रक्खें । इस प्रकार अन्य संवरणा बनायी जाती है ॥५॥ पच्चीस संवरणा के नाम
"पुष्पिका नन्दिनी चैव दशाक्षा देवसुन्दरी । कुलतिलका रम्या च उद्भिमा घ नारायणी ।। नलिका बम्पका चैव पयाख्या च समुद्भवा । त्रिदशा देवगांधारी रत्नगर्भा चूडामणिः ॥ हेमकूटा चित्रकूटा हिमाख्या गन्धमादिनी । मन्दरा मालिनी स्याता के लासा रत्नसम्भवा ॥ मेरु कूटोलवा स्याताः संख्यया पञ्चविंशतिः ।"
अप० सूत्र १६३ श्लोक २ से ५ पुष्पिका, नन्दिनी, दशक्षिा, देवसुन्दरी, कुलतिलका, रम्या, उद्भिशा, नारायणी, नलिका, चम्पका, एमा, समुद्भवा, त्रिदशा, देवगान्धारी, रत्नगर्भा, चूडामणि, हेमलटा, चित्रकूटा, हिमाख्या, गन्धमादिनी, मन्दरा, मालिनी, कैलासा, रत्नसंभवा और मेस्कटा, ये ये पच्चीस संयरणा के नाम हैं।
मानरत्नकोश नाम के ग्रन्थ मैं बत्तीस संवरणा लिखा हैं । उनके नाम भी अन्य प्रकार के हैं। घंटिका को संख्या प्रासाद के मानानुसार लीखी है । जैसे-एक या दो हाथ के प्रासाद के ऊपर पांच घंटिका बाली संघर, तीन हाय के प्रासाद के ऊपर नक, पार हाथ के प्रासाद के कपर तेरह, इस प्रकार पचास हाथ के प्रासाद के ऊपर एकसौ उनतीस घंटिका बहाना लोखा है । तथा घंटिकामों की संख्यानुसार बत्तीस संवरण के नाम लीखे हैं। जैसे-पांच घंटावालो पचिनो, नव धंदावालो मेदिनी, तेरह घंटावाली कलशा, इस प्रकार एकसो उनतीस घंटावालो राजवर्धनी है। प्रथमा पुष्पिका संवरणा
"चतुरस्रीकृते क्षेत्रे अष्टधा प्रतिभाजिते । उच्छयः स्याध्यतुभांगेः सर्वासामोदयः ।। मूलकूटोद्भवाः कर्णा द्विभागैः पृथग् विस्तरा। भागोदया विधातव्याः कूटा वै सर्वकामदाः॥"