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सप्तमोऽध्यायः
क्षेत्र के विस्तार के प्राये का छह भाग करें, उनमें से एक भाग कम करके बाकी पांच भाग के मान की प्रष्टास्त्र की एक भुजा का मान आने । यदि षोडशास्र बनाना हो तो क्षेत्र के विस्तार का छह भाग करें। उनमें से एक भाग का छठा भाग विस्तार के छठे भाग में जोड़ देने से जो मान हो, यही मानको षोडवाल की एक भुजा का मान होता है ।।२।। वितान (चंबोवा-गूमट)
अष्टास्त्र षोडशास्त्र च वृत्तं कुर्यात् तदूर्ध्वतः ।
उदगं रिलमान पाच हप्तका बगेद ॥२६॥ मंडप के चंदोवा का उदय बनाने की क्रिया इस प्रकार है । प्रथम पाट के ऊपर अष्ट्रास बना कर उसके ऊपर षोडशास्त्र बनावें और षोड़शास्त्र के ऊपर गोलाई बनावें। मंडप के विस्तार से प्राधा वितान का उदय सखें । उदय में पांच छह अथवा सात घर बनावें ॥२९।। वितान (गूमट) के थर
कर्ण दर्दरिका सप्त-भागेन निर्गमोन्नता' । रूपकण्ठस्तु पञ्चांशो द्विभागेनात्र निर्गमः ।।३०।।
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गावापानी
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प्राचार का सामना करना
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बिलान धितान भाग
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१. "निर्गमोन्छ यः ।'
२. विभागोभत ।'