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सामोऽध्यायः
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ऐसे ये बारह प्रकार के मंडप मूढ मंडप के प्रागे अनेक प्रकार के चौकी वाले किये आते हैं। तथा ये मंडप समचोरस प्रादि प्राकृति वाले और अनेक प्रकार के वितान (चंदोवा) वाले होते हैं ॥२४॥
नत्यमण्डप
विकाने रङ्गभूमिर्या तत्रैव नृत्यमण्डपः ।
प्रासादाग्रेज्य सर्वत्र प्रकुर्याच विधानतः ॥२५॥ चौकी मंडप के आगे जो रंगभूमि है, उसी भूमि के ऊपर ही नृत्य मंडप किया जाता है । ऐसा सत्र प्रासादों के आगे बनाने का विधान है ॥२५॥
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