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वितान हैं । " किन्तु इसमें इसकी प्राकृतियों का वर्णन नहीं लिखा है।"
पचनाम, सभापद्म, सभामन्दारक और कमलोद्भव ये चार मिश्र जाति के
वितानानि विचित्राणि वस्त्र चित्रादिमेदवः । शिल्पिलोके प्रवर्तन्ते तस्मादूयानि लोकतः || ३६ ||
मण्डपेषु च सर्वेषु पीठान्ते रङ्गभूमिका । कुर्यादुत्तानपट्टन चित्रपापायजेन च ||३७||
जैसे अनेक प्रकार के चित्र माथि से विभिन्न प्रकार के वस्त्र हैं, वैसे ही शिल्पशास्त्र में अनेक प्रकार के वितान है । वे अन्य शास्त्रों से विचार करके बनायें ||३६||
रंगभूमि
बलाणक का स्थान-
इति मण्डपाः ।
समस्त मंडपों की पीठ के नीचे की जो भूमि है, वह रंग भूमि कही जाती है । यह बड़े लंबे चौड़े पाषाणों से तथा अनेक प्रकार के चित्र विचित्र पाषाणों से बनाने चाहिए ||३७||
प्रसादम
जगतीपादविस्तीर्ण पादपादेन वर्जितम् । शालालिन्देन गर्मेण प्रासादेन समं भवेत् ||३६||
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मलाणं देवगेहात्रे राजद्वारे गृहे पुरे ।
जलाश्रयेऽथ कर्त्तव्यं सर्वेषां मुखमण्डपम् ||२८||
देवालय के द्वार के धागे तथा प्रवेश द्वारके ऊपर, राजमहल, गृह, नगर और जलायम ( बावडी, तालाब आदि ) इन सब द्वार के प्रागे मुखमंडप ( बलायक ) किया जाता है ||३||
बलाक का मान
प्रासाद में बलाक का स्थान
बलाक का विस्तार जगतो का चौथा भाग का श्रथवा दोघे का चौथा भाग न्यून, शाला और मलिंद के मान से, प्रासाद के गर्भमान के अथवा प्रासाद के मान के बराबर बनावें ||३६||
उसमे कन्यसं मध्ये मध्यं ज्येष्ठं तु कन्यसे । एक द्वित्रिचतुःपञ्च - रससप्तपदान्तरे
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