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'चतुर्थोऽयायः
छज्जा के ऊपर शुकमास का उदय पांच प्रकार का माना है। उनमें से शुकनास के उदय का जो मान आया हो उसका नव भाग करें। इनमें से एक, तीन, पांच, सात अथवा नव, इन पांच भागों में से किसी भी भाग में सिंह स्थान की कल्पना कर सकते हैं । अर्थात् उस स्थान पर सिंह रखा जाता है ॥२७॥
• कपिली (कोलों) का स्थान
द्वारस्य दक्षिणे कामे कपिली विधा मता ।
शुकनासा स्यात् सैव प्रासादनासिका ||२८||
गर्भगृह के द्वार के कार दाहिनी और बांयी ओर छह प्रकार से कोली बनावें । उसकी ऊंचाई में शुकनास बनावें, यह प्रासाद की नासिका है ||२८||
कपिली का मान-
प्रासादो दशभागश्च द्वित्रिवेदांश सम्मिताः । प्रासादार्धेन पादेन त्रिभागेनाथ निर्मिता ॥२६॥
प्रासाद के विस्तार का दस भाग करें, उनमें से दो तीन अथवा चार भाग को, तथा प्रासाद के मान से आधे चौथे अथवा तीसरे भाग के मान को ऐसे छह प्रकार के मान से कपिली (कोली ) बनाने का विधान है ||२६
यह प्रकार की कपिली
"चिता कुविता शस्यात्रिोदितकमागताः । मध्यस्था भ्रमा सभ्रमा षट्कोल्यः परिकीर्तिताः ॥ प्रासादे दशचा भक्ते भूमिसीमा विचक्षण ! 1 चिताच द्विभागा स्यात् त्रिभागा कुञ्चिता तथा ॥ atar देवं चतुर्भागा faar चक्रमागताः ।
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प्रासादपादमध्यस्था
अमा सद्यविभागतः ।
श्रद्ध तु सभ्रमा कार्या प्रासादस्य प्रमाणतः ॥ श्र० सू० १३८
● गर्भगृह के द्वार के मंडप को कोसी मंडप कहते हैं। उसके छा के ऊपर शुक्रवास के दोनों तरफ शिखर के आकार का मंडप किया जाता है, उसको माधुनिक शिल्पीयों प्रासादपुत्र कहते हैं । उसका नाम
कपिली अथवा कोली है।