________________
४
प्रासादमण्डने
..... .................... ......"
अंचिता, कुञ्चिता, स्या, मध्यस्था, भ्रमा और सभ्रमा ये यह प्रकार के कोली के नाम हैं। प्रासाद के विस्तार का दस भाग करके, उनमें से दो भाग की कोली बनावें, उसका नाम अंचिता, तीन भाग वाली कोली का नाम कुचिता और चार भाग वाली कोली का नाम शस्मा है। तया प्रासाद के विस्तार मान के चौथे भाग को कोलो बनावें, उसका नाम मध्यस्था, तोसरे भाग वालो कोली का नाम भ्रमा और प्राधे भाग वाली कोली का नाम सभ्रमा है। . प्रासाद के अंडक और आभूषण
शृङ्गोलगप्रत्यङ्ग गणवेदएइकानि' च।
तबङ्गतिलक कर्णं कुर्यात् प्रासादभूषणम् ॥३०॥ शिखर, उरुशृङ्ग, प्रत्यंग और शृङ्ग, ये प्रासाद के अंडक माने जाते हैं, ऐसा विद्वान लोग मानते हैं । तथा सरग, तिलक और सिहवर्ण प्रासाद वे. श्राभू, माने जाते हैं ॥३०॥ शिखर के नमन का विभाग---
दशांशे शिखरे मूले अग्रेतननवांशके ।
साांशको रथी कर्णों द्वौ शेष भद्रमिष्यते ।।३१।। शिखर के मूल में दस भाम और ऊपर स्कंध के नव भाग करें, उनमें से हैद २ भाग के दो प्रतिरथ प्रौर दो दो भाग के दोनों कोने बनावें । बाकी जो तीन भाग नीचे और दो भाग पर बचे हैं, उस मानका भद्र बनावें ॥३१॥
प्रामलसार का मान--
रथयोरुभयोर्मध्ये वृत्तभापलसारकम् । उच्छयो विस्तराधेन चतुर्भागर्विभाजयेत् ॥३२॥ ग्रीवा चामलसारश्च पादोना च सपादकः ।
चन्द्रिका भागमानेन भागेनामलसारिका ॥३३॥ दोनों प्रतिरथ के मध्य विस्तार के मान का गोल मामलसार वनाना चाहिये । इसकी ऊंचाई विस्तार से श्राधी रक्खें। ऊंचाई का चार भाग करें। उनमें से पौने भाग की ग्रीवा (गला ), सवा भाग का नामलसार, एक भाग की चन्द्रिका और एक भाग को प्रामलसारिका बनावें ॥३२-३३॥
(१) 'एकाच गणवेत् सुत्री:' ।