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प्रासादमबने
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मुखभद्रयुतो वापि द्वित्रिप्रतिरथैर्युतः ।
कर्णोदकान्तरेणाथ भद्रोदकविभूषितः ॥१७॥ माठ प्रकार के मूढ मंदपों की भी दीवार प्रासाद के दीवार जैसी बनावें प्रति प्रसाद की दीवार जितने थरयाली हों उतने घरवाली और रूपों की प्राकृति वाली हो तो रूपों की प्राकृति बाली गूढ मंडप की दीवार बनानी चाहिये । वे समबोरस, सुभद्र और प्रतिरथ बाला, मुखभद्र पौर दो या तीन प्रतिरथ वाला, कर्ग जलान्तर वाला अथवा भद्र जलान्तर वाला, ऐसे पाठ प्रकार के गूढ मंडप हैं ॥१६-१७॥
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