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पञ्चमोऽध्यायः
एक २ श्रृंग और भद्र के ऊपर दो २ उरुशृंग रक्खें। ऐसा नंदन नाम का प्रसाद है ||१२||
सख्या १३ । कोणे ४ भ प श्रीर एक शिक्षर ।
३-सिंहप्रासाद----
अंडक
प
......
मुखमद्रे
रथिकोपरि ||१३||
प्रतिभद्र- मुद्गमो कर्णशृङ्गे सिंहकर्णः सिंहनामा स उच्यते । देवतासु प्रकर्सच्या सिंहस्तचैव शाखतः ||१४||
तुभ्यति गिरिजा वस्य रथिका fissure भद्रे
२. 'देवानां तु' ।
सौभाग्यधनपुत्रदा ।
शृङ्गे च सिंहकः ॥१५॥ इति सिंहः ।
तल विभक्ति नन्दन प्रासाद की तरह ही करें। मुखभद्र में प्रतिभद्र बनायें । तथा भद्र के गवाक्ष के ऊपर उदूम बनायें कोने के रंगों के ऊपर सिंह रक्खें। ऐसा सिंह नाम का प्रासाद है । यह देवता ( देवों) के लिये बनायें | इसमें सिंह शाश्वत रहता है, इसलिये पार्वती देवी खुश होती है और सौभाग्य धन और पुत्र देती है । मद्र को रथिका के ऊपर सिंहकर्ण और श्रृंगों के ऊपर भी सिंहक रखने से सिंह नाम का प्रासाद है ।।१३ से १५||
४- श्रीनन्दन] प्रासाद---
कर्णे भृङ्ग तु पञ्चाडं स श्रीनन्दन] उच्यते ।
नंदन प्रासाद
५- मंदिर और ६-मलय प्रासाब
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इति नन्दनः इतिभ्यङ्गप्रासादाः ।
नन्दन प्रसाद के कोने ऊपर पांच अंक वाला केसरी श्रृंग चढ़ावें तो यह श्रीमन्दन नाम का प्रासाद होता है । शृङ्ग संख्या २६ । कोणे केसरी क्रम २०, भने ८ एक शिखर
व्यङ्गा इत्यर्थः षद्भागैश्चतुरसं विभाजयेत् ॥१६॥ कर्णं प्रतिरथं कुर्याद् भद्रार्धं भागभागिकम् । समं निर्मममशैश्च मद्रं भागा निर्गमम् ||१७||
३. निर्गमममाच'