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षष्ठोऽध्यायः
केसरी मादि प्रासादों को तल विभक्ति माठ हैं। उनमें क्रमशः एक, दो, तीन, तीन, सीन, चार बार और पांच प्रासाद हैं । अर्थात् आठ तल वाला प्रथम एक प्रासाद; दस तल का दूसरा और सोसरा के दो; बारह तल का चौथा, पांचवां और खट्टा ये तीन प्रासाद; चौदह तल का सातवां, mrai और नवां ये तीन प्रासाद सोलह तलका दसवां ग्यारहवां और बारहवां ये तीन प्रासाद, प्रठारह तलका तेरहवां, चौदहवां, पंद्रहवां श्रौर सोलहवां ये चार प्रासाद) बीस तलका सत्रहवां, अठारहवां, उन्नीसवां और बीसवां ये चार प्रासाद और बाईस तलका इक्कीस से पञ्चस तक के पांच प्रासाद: है । ऐसा किसी ( क्षीरात्रि ) का मत है ॥१४॥
शिखरं त्वेकवेदकं पत्रिवेदयुमद्वयम् ।
तलेषु कमतः प्रोक्तो मूलसूत्रेऽपराजिते || १५ ||
केशरी प्रासादों में प्रथम, दोसे पांच ये चार प्रासाद दस तलका छठा एक प्रसाद बारह तलका, सात से बारह से छः प्रासाद चौदह तलका १३ से १५ ये तीन प्रसाद सोलह तलका १६ से १६ मे चार प्रासाद अठारह तलका २० से २३ ये चार प्रासाद बीस तलका और चौबीसवां और पच्चीसवां में दो प्रासाद बाईस तलका होता है। यह कृलसूत्र अपराजित पृच्छा का मत है ||१५||
तवष्टासु विहिताः प्रासादाः पञ्चविंशतिः । arस्त्रयः क्रमेणैव
मे ले ||१६||
९. 'दिव्येक'
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केसरी आदि पच्चीस प्रासादों को जो साठ तल विभक्ति हैं, उनमें प्रत्येक तल के तोन २ प्रासाद हैं और माठवां बाईस विभागीय तल के चार प्रासाद हैं ||१६||
त्रीणि त्रीणि स्वकीयानि द्वे द्वेपरः परस्य च । शिखराणि farasaat यथा ॥ १७ ॥
विधेयानि
ऊपर १६ वें श्लोक में तलों के तीन २ प्रासाद बनाने की जो बात कही गई है। यह मेरा स्वयं (मंडन ) का मत है और नीचे के श्लोक १८ वें में दो दो श्रादि प्रासाद लिखा है, यह दूसरे का मत है । ये एकवीस प्रासाद विश्वकर्मा के वचन के अनुसार बनाये हैं ॥१७॥
'द्विद्व कपट्योऽष्टादि-तलेषु पञ्चसु क्रमात् ।
सप्तैव सप्तमे पष्ठे शिरांसि त्रीणि चाष्टमे ॥ १८॥