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प्रतिरथ डेढ़ भाग, कोणी आधा भाग और भद्रार्ध एक भाग, इस प्रकार बारह भाग की तल
विभक्ति है ।।३६-३७॥
४- भुवनमण्डन मेरुप्रासाद
त्रिशतं पञ्चसप्तत्या--धिक प्राण्डकैः सह । भक्तश्चतुर्दशशिस्तु नाम्ना वनमण्डनः ॥३८॥ कोणः कोणी प्रतिरथो नन्दी मद्रार्धमेव च । साश्चतुर्दशविभाजिते
॥३६॥
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मण्डन नाम का मेरुप्रासाद तीनसो पचहत्तर श्रृंगवाला है। इसके तलका ate विभाग करें। उनमें से को दो भाग, कोणी एक भाग, प्रतिरथ दो भाग, कोणी श्राधा भाग और भद्रार्ध देव भाग रक्खें ॥३५-३६॥
५- रत्नशीर्ष मेरुप्रासाद-
वाकवेयुग्मांशा वेदा. रत्न शीर्षो भवेन्मरुः
६-- किरणोद्भव मेरुप्रासाद----
सामने
कर्णादिभागतः । पञ्चशतैकशृङ्गकैः ॥४०॥
पांचवां रत्नशीर्ष मेरु प्रासाद के तलका बत्तीस भान करें। उनमें से पांच भाग का कोना, एक भाग की कोनी, चार भाग का प्रतिरथ दो भाग की नन्दी और चार भाग का मद्रा रक्खें। इस प्रसाद के ऊपर पांचसी एक श्रृंग हैं ||४०||
गुयुग्म चन्द्र द्व पुराणशैर्विभाजिते । किरोमेरुre
७- कलहंस मेरुप्रासाद
संपादषट्शताएढकः ॥४१॥
formate प्रासाद के तल का अठारह भाग करें। उनमें से तीन भाग का
कोरा, एक भाग को कोणो, दो भाग का प्रतिरथ, एक भाग की नन्दी और दो भाग का भद्रार्ध रक्खें | इस प्रासाद के ऊपर छसी पच्चीस रंग हैं ॥४१॥
रामचन्द्र द्वियुग्मांश नेत्रे विंशतिभाजिते
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नाम्ना कमलहंसः स्यात् सार्घसप्तशताण्डकः ॥४२॥
सात कमलहंस नाम मेरु प्रासाद के तलका बीस भाग करना चाहिये। उनमें से