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चतुर्थोऽध्यायः
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प्रकारान्तर से प्रामलसार का मान----
"स्कन्धः पहभागको ज्ञेयः सप्तशामलसारकः । क्षेत्रमविशमा पछये
: ग्रोथा भागश्रयं कार्या अण्डकः पञ्चभागकः । त्रिभागा चन्द्रिका चव तथैवामलसारिका !! निम पटसार्थभागो भवेदामलसारिका । चन्द्रिका- द्विसाधभाग अण्डकः पञ्च एव च ।। " ज्ञान प्रदी० अ०६
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आमादसा
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firmairiesTRANA नमिता तोरणयमते प्रामलकारक मान .
स्वमते प्रामलसारका मान
स्कंध का विस्तार छह भाग और ग्रामलसार का विस्तार सात भाग रक्खें। आमलसार के विस्तार का अठाईस भाग प्रौर ऊंचाई का चौदह भाग करें । उदय में तीन भाग का गला, पांच भाग का अंडक, तीन भाग को चन्द्रिका और तीन भाग की प्रामलसारिका रवखें ।
आमलसार के मध्य गर्भ से विस्तार में साढे छह भाम निकलती प्रामलसारिका, इससे ढाई भाग निकलती चंद्रिका और इससे पाच भाग निकलता अंधक (मामलसार ) रखना चाहिये। मामलसारके नीचे शिखरके कोणरूप---
"शिवे तु चैश्वरं रूपं ध्यानमग्नं विचक्षण !!
शिखरकरणे दातव्यं जिने कुर्याग्जिनेश्वरः ॥" क्षीरावे । ... शिखर के मामलसार के नीचे और स्कंध के कोने के ऊपर शिवालय हो तो ध्यान में मग्न ऐसे शिव के रूप तथा जिनालय हो तो जिनदेव के रूप रखे जाते हैं ।