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चतुर्थीऽष्यावः
प्रासाद की खरशिला से लेकर कलश के अग्रभाग तक के हृदय का तीन भाग करके, में से एक भाग के मान का लंबा ध्वजादंड बनावें । यह ज्येष्ठमान का है। इनमें से आठवां भाग कम करने से मध्यम मान का श्रीर चोबा भाग कम करने से कनिष्ठ मान का ध्वजदंड होता है ॥ ४१ ॥
ध्वजादंड का दूसरा उवयमान
प्रासादन्यासमानेन दण्डो ज्येष्ठः प्रकीचितः ।
मध्यो हीनो दर्शाशन पञ्चमांशेन कन्यसः || ४२॥
प्रासाद के विस्तार के बराबर ध्वजादंड की लंबाई रक्खें, यह ज्येष्ठ मान का ध्वजार्द है । इसमें से दसवां भाग कम करें तो मध्यम मान का और पांचवां भाग कम करें तो कमिष्ठ मान का ध्वजदंड होता है ||४२॥
ध्वजादंड का तीसरा उदयमान
"मूल रेखाप्रमाणेन ज्येष्ठः स्याद् दण्डसम्भवः ।
मध्यमो द्वादशांशोः षडंशोनः कनिष्ठकः ॥" अप० सू० १४४
रेखा | गर्भगृह अथवा शिखर के नीचे के पायचा के विस्तार जितना ) के विस्तार मान का लंबा ध्वजाद बनायें, यह ज्येष्ठ मान का है। उसमें से बारहवां भाग कम करें तो मध्यम और छठा भाग कम करतो कनिष्ठ मान का ध्वजादंड होता है । विवेक विलास के प्रथम सर्ग के श्लोक १७६ में स्पष्ट लिखा है कि
"eur: प्रकाशे प्रासादे प्रसादकरसंख्यया ।
tattis का विस्तारमान -
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सान्धकारे पुनः कार्यो मध्यप्रासादमानतः ॥"
प्रकाश वाले ( विना परिक्रमा वाले ) प्रासाद का ध्वजादंड प्रासाद के मान का बनायें, अर्थात् प्रासाद का जितना विस्तार हो उतना लंबा ध्वजा बनायें | अंधकार वाले ( परिक्रमा वाले) प्रासाद का ध्वजादंड मध्य प्रासाद के मान का बनावें । अर्थात् परिक्रमा और उसकी दीवार को छोड़कर के गभारे के दोनों दीवार तक के मान का बनायें |
एकहस्ते तु प्रासादे दण्ड : पादोन मङ्गुलम् । कुर्यादङ्गला वृद्धि - पवित्पञ्चाशद्धस्तकम् ||४३||
२. यह मत प्रचार में अधिक है ।