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प्रासादमखने
बारह २ अंगुल और इकतीस से पचास हाथ तक के विस्तार वाले प्रासाद का उदय प्रत्येक हाय नव २ अंगुल की वृद्धि करके रखें। इस प्रकार पचास हाय के प्रासाद की कुल ऊंचाई पचीस हाय और ग्यारह अंगुल होती है ।।१५-१६॥ देखो अपराजित पूच्छा सूत्र १२६ अन्य प्रकार का उदयमान----
एक हस्वादिपञ्चान्तं पृथुत्वेनोदयः समः । हस्ते सूर्याङ्गुलावृद्धिावत् त्रिंशत्करावधि ॥१७॥ नवाङ्गला करे वृद्धि-पर्यावद्धस्तशताधकम् ।
पीलो उदारतेष जाधान्ते नागरादिषु' ॥१८॥ __ एक से पांच हाथ तक के विस्तार वाले प्रासाद का उदय विस्तार के बराबर रक्खें। पोछे छह से तीस हाथ तक के प्रासाद का उदय प्रत्येक हाथ बारह २ अंगुल बढ़ाकर के और इकतीस से पचास हाथ तक के प्रासाद का उदय प्रत्येक हाथ नव २ अंगुल बढ़ाकर के रक्खें। यह प्रासाद का उदय पीठ के ऊपर खुरा से लेकर छजना के अंत भाग तक माना गया है।।१७-१८ . प्रासाद के उदय के लिये अपराजित पृच्छा सूत्र १२६ में श्लोक १० में अन्य प्रकार से लोसा है कि
__ "कुम्भकादि प्रहारान्तं प्रयुक्तं वास्तुवेदिभिः ।
सदघस्तात्तु पीठं च ऊर्ध्वं स्याच्छिखरोदयः ।।" कुम्भा के घर से लेकर छाथ के प्रहार घर के अंत तक ऊंचाई जाननी चाहिये, ऐसा वास्तुशास्त्र के जानने वाले विद्वानों ने कहा है। कुम्भा के नीचे पीठ औराप्रहार घर के ऊपर शिखर का उदय होता है। क्षीरार्णव के मतानुसार पासाद का उदयमान--
"एकहस्ते तु प्रासादे त्रयस्त्रिशाङ्गलोदयः । द्विहस्ते तूदमः पार्क सप्ताङ्गलः करद्वयः ।। विहस्ते च यदा माना-दधिकश्च पञ्चाङ्गलः । चतुर्हस्तोदयः कार्य एकनाङ्गलेनाधिकः ।। विस्तरेण समा कार्यः पञ्चहस्तोदये भवेत् । षहस्ते तूदयः कार्यों न्यूनी द्वावली तथा । उदयः सप्तहस्ते च स्पूनः समाङ्गलस्तथा । अष्टहस्तोदयः कार्य: षोडशाङ्गलहीनकः ॥ होन एकोनविंशः स्यात् प्रासादे नवहस्तके ।
दश हस्तेषूदयः कार्योऽष्टहस्तप्रमाणतः ॥ (१) 'नागरोषितः।