________________
100
प्रासादमरने
कोणी बनावें । गान्धर्व शाखा का निर्गम एक भाग रक्खें। उसके समसूत्र में बल्वशाखा और सिंहशाखा एक २ भाग निकलती रक्खें। स्तंभ का निर्गम समा अथवा बेद भाग का भी रख सकते हैं । द्वार के उदय का प्रष्टमांश शाखा के पेटाभाग का विस्तार रखें। सप्तशाखा के मान-----
प्रथमा पत्रशाखा च गन्धर्वा रूपशाखिका । चतुर्थी स्तम्भशाखा च रूपशाखा च पञ्चमी ।।६४|| षष्ठी तु खल्पशाखा च सिंहशाखा च सप्तमी । स्तम्भशाखा भवेन्मध्ये रूपशाखाग्रसूत्रतः ॥६५॥
इति सप्तशाखा:। प्रथमा पत्रशाखा, दूसरी गान्धर्वशाखा, तीसरी रूपशाला, चौथी स्तंभशाखा, पांचवीं रूपशाखा, छट्ठी खल्वशाखा और सातवी सिंहशाखा है। मध्य में स्तंभशाखा रक्खें। यह रूपशाखा से प्रागे निकलती हुयी रक्खें ।।६४-६५॥
सप्तशाखा का मान
"शाखाविस्तारमानं तु वसुभागविभाजितम् । भागभागाश्च शाखाः स्यु-मध्यस्तम्भो द्विभागिकः ।। कोरिणका भागपादेन विस्तारे निर्गमे तथा । निर्गमः सार्धभागेन रूपस्तम्भः प्रशस्यते ॥ . गन्धर्वा सिंहशाखा च निर्गमो भागमेव च ।
निर्गमश्च तदर्धेन शेषाः शाखाः प्रशस्यते ॥' अप० सू० १३२ सप्तशाखा के विस्तार का पाठ भाग कर उनमें से प्रत्येक शाखा का विस्तार एक २ भाग और मध्य में स्तंभ का विस्तार दो भाम रक्खें। स्तंभ में दोनों तरफ विस्तार में और निर्गम में पाव २ भाग की कोणिका बनावें । डेढ़ भाग निकलता रूपस्तम रखना अच्छा है। गंधर्व और सिंहशाखा का निर्गम एक २ भाग और बाको शाखामों का निर्गम प्राधा २ भाम रखना अच्छा है। লঙ্কা * নাম--
पत्रगान्धर्वसज्ञा च रूपस्तम्भस्तृतीयकः । चतुर्थी खल्वशाखा च गन्धर्वा स्वथ पञ्चमी ।।६।।