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चतुर्थोऽध्यायः
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गर्भगृह के बराबर दो भाग करके दीवार की तरफ के अर्धभाग के दस भाग करें, उनमें से दीवार से प्रथम भाग में पिशाच, दूसरे में राक्षस, तीसरे में दैत्य, चौथे में गंधर्व, पांच में थक्षछठे में सूर्य, सातवें में चंडिका, पाठवें में विष्णु, नवें में ब्रह्मा और दसवें में शिव को स्थापित करें। अग्निपुराण अ०६७ के मत से पदस्थान----
"षभिविभाजिते गर्भ त्यक्त्वा भागं च पृष्टतः । स्थापनं पञ्चमांशे च यदि वा वसुभाजिते ।।
स्थापनं सप्तमे भागे प्रतिमास सुखावहम् ।।" गर्भगृह का छह भाग करें, उनमें से दीवार के पासका एक भाग छोड़ दें, उसके प्रागे के पांचवें भाग में सब देखों को स्थापित करें । अथवा गर्भगृह के पाठ भाग करके दीवार के पासका एक भाग छोड़ दें, उसके प्रागे सातवें भाग में सब देवों को स्थापित करना सुखकारक है । * प्रहार थर--
खाद्यस्योर्चे प्रहारः स्याच्छङ्ग शृङ्ग तथैव च ।
प्रासादक्षाधु अधोभागे तु छाद्यकम् ॥८॥ छज्जा के ऊपर प्रहार का पर बनावें। प्रत्येक शृङ्ग के नीचे प्रहार का घर बनाना चाहिये । उसके नीचे खाद्य { छज्जा) बनायें | थायके परमान---
छाध भागद्वयं साधं सार्धमागं च पालवम् ।
मुण्डलीकं भागमेकं भागेन तिलकस्तथा ॥६॥ A छज्जा का उदय दो भाग अथवा डेढ़ ( ढाई ? ) भाग, पालव डेढ भाग, मुंलिक एक भाग और तिलक एक भाग रखना चाहिये ।।६।। भूगक्रम--
मूलकणे रथादौ च एक द्वित्रिक्रमान् न्यसेत् ।
निरन्धारे मूलभिसौ सान्धारे भ्रमभितिषु ॥१०॥ विशेष माहिती के लिये स्वयं द्वारा अनुवादित 'देवतामूस्ति प्रकरण' और 'एमएन' देखना चाहिये । A मह श्लोक बहतसो प्रतों में नहीं है।
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