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प्रासादमडने
तीन भाग करने से सात कला रेखा होती हैं । इसी तरह दूसरी तरफ के कोण को भी सात कला रेखा होती हैं। ऐसी कुल चोदह कला रेखाओं में दोनों प्रतिकर्ष की दो कला रेखा मिलाने से सोलह कला रेखा होती हैं । इनके उदय में सोलह २ भाग करने से दोसौ छप्पन कला रेखामें होती हैं। उदयभवोद्भवरेखा--
सपादं शिखरं कार्य सकणं शिखरोदयम् ।
संपादकर्णयोमध्ये रेखाः स्युः पञ्चविंशतिः ॥१३॥ मूलरेखा के विस्तार से शिखर का उदय सवाया करें । सबाया शिखर में दोनों कोने के मध्य में पचीस रेखायें हैं ।।१शा
. सपादकर्णयोमध्ये उदये पञ्चविंशतिः ।
प्रोक्ता रेखाः कलाभेदै-चलणे पञ्चविंशतिः ॥१४॥ सवाया उदय वाले शिखर के दोनों कोने के मध्य में पचीस रेखा उदय में होती हैं। काला के भेद से ये शिखर के नमन में पचौस रेखायें है ॥१४॥ कलाभेदोद्भव रेखा--
पञ्चादिनन्दयुग्मान्तं खण्डानि तेष्वनुक्रमात् ।
अंशवृद्धया कलाः कार्या दैये स्कन्धे च तत्समाः ॥१५॥ शिखर के उदय का पांच से लेकर उनतीस खंड करें। उन खंडों में अनुक्रम से एक २ कला उदय में बढ़ावें । जैसे-प्रथम पांच खंडों में एक से पांच कला, छठे में छह और सास में सात, इस प्रकार उनतीसचे खंड में उनतीस कला है । उदय में जितनी कला होवे, उतनी कला संख्या स्कंध में भी बनाना चाहिये ॥१५॥
अष्टादावष्टपष्टयन्त चतुर्थ द्धया च पोडश ।
दैर्ध्यतुल्याः कलाः स्कन्धे एकहीनांशोऽशोभनम् ॥१६॥ प्रथम समचार की त्रिकखंडों में पाठ २ कला रेखा हैं। पोछे भागे के प्रत्येक खंड में चार २ कला बढ़ाने से अठारहवें खंड में अड़सठ कला रेखा होती है । उदय में जितनी कला रेखा हो, इतनी स्कंध में भी बनाई । एक भी कम रक्खें तो शोभायमान नहीं लगता ॥१६॥
(१) पुनरुक्ति मालूम होता है।