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प्रसादने
को कहा है ) जो उदयमान माया हो, उसका ग्राठ भाग करें, उनमें से एक भाग की कुम्भी, साढ़े पांच भाग का स्तंभ, आधे भाग की भरली और एक भाग की शिरावटी बनावें । इसके उपर डेढ़ भाग का केवाल | पाट । खवं । गर्भगृह के विस्तार से प्राधा करोट ( गुम्बज ) का उदय रखना चाहिये, उसमें दर्द का घर विपन संख्या में रक्खें ||३५ से ३७ ||
उदुम्बर ( देहली) की ऊंचाई
मूर्णम्य सूत्रेण कुम्भेनोदुम्बरः समः । तदधः पञ्चरत्नानि स्थापयेच्विल्पिपूजया ||३८||
प्रसाद के कोने के समसूत्र में उदुम्बर ( देहली ) बनायें। यह कुम्भा के उदय के बराबर ऊंचाई में रखें। इसको स्थापना करते समय नीचे पंचरत्न खें प्रौर शिल्पियों का सम्मान करें ||३८||
उदुम्बर की रचना
द्वारव्यासत्रिभागेन मध्ये मन्दारको भवेत् । वृतं मन्दारकं कुर्याद् मृणालं पद्मसंयुतम् ||३६|| जायकुम्भः कणाली च कीर्त्तिवक्त्रद्वयं तथा । उदुम्बरस्य पार्श्वे च शाखायास्तलरूपकम् ||४०|
द्वार के विस्तार का अर्थात् देहली का तीन भाग करें। उनमें से एक भाग का मध्य में मंदारक बनावें । वह प्रर्धचंद्र के आकार वाला गोल और पद्मपत्र युक्त बनाना चाहिये ।
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कुम्दर की ऊंचाई के अर्धभाग में जाड्यकुम्भ और कली, ये दो घर वाली कोठ बनावें । मंदारक के दोनों तरफ एक २ भाग का कीर्तिमुख ( ग्रासमुख ) बनायें और उसके बगल में शाखा के तलका रूपक बनावें ||३६-४०॥
कुंभा से होन उदुम्बर और तल
कुम्भस्या त्रिभागे वा पादे हीन उदुम्बरः । तदर्धे कर्णकं मध्ये पीठान्ते बाह्यभूमिका ॥४१॥
इति उदुम्बर ।
उदुवर का उदय कुम्भ के उदय के बराबर रखना चाहिये । परन्तु कम करना चाहे तो कुम्भ के उदय का श्राघा एक तृतीयांश प्रथवा चौथा भाग जितना कम कर सकते है । उदय के प्रा भाग तक करोठ करना और गर्भगृह का तल रखना चाहिये और बाहर के मंत्रों के तल पीठ के उदयान्त बराबर रक्खे || ४१ ॥