________________
६२
नागरासाथ का द्वारमान
rase तु प्रासादे द्वारं स्यात् षोडशाङ्गुलम् | पोडशाङ्गुलिका वृद्धि-र्यास्तचतुष्टयम् ॥४४॥ हस्तान्तकं यावत् दीर्घे बुद्धिगुणामुला । द्रयङ्गुला प्रतिहस्तं च यावद्धस्तशताद्ध कम् ॥ ४५ ॥ पानवाहन पन्यङ्क द्वारं प्रासादसनाम् । seat पृथुस्वं स्याच्छोभनं तत्कलाविकम् ॥४६॥
न
इति नागरप्रासादद्वारमानम् ।
नागर जाति के प्रासाद के द्वार का उदय एक हाथ के विस्तार वाले प्रासाद के द्वार का उदय सोलह अंगुल रखना चाहिये । पीछे चार हाथ तक सोलह २ अंगुल, पांच से पाठ हाथ तक तीन २ अंगुल और नौ से पवास हाथ तक प्रत्येक हाथ दो २ अंगुल बढ़ा करके द्वार का उदय रखना चाहिये। इस प्रकार पचास हाथ के प्रासाद के द्वार का उदय १६० अंगुल होता है । पालखी, वाहन, शय्या थोर पलंग तथा प्रासाद और घर का द्वार, ये सब विस्तार में लंबाई से प्राधा रखना चाहिये । उसमें भी लंबाई का सोलहवां भाग विस्तार में बड़ाये तो अधिक शोभायमान होता है ॥४४ से ४६ ॥
क्षीरार्णवमें कहा है कि
-
प्रासादमयने
"एकहस्ते तु प्रासादे द्वारं च षोडशाङ्गुलम् । इयं वृद्धि: प्रकर्तव्या यावच्च चतुर्हस्तकम् ॥ वेदाङ्गुला भवेद् वृद्धिर्यावण दशहस्तकम् । हस्तविंशतिमाने च हस्ते हस्ते याला ||
गुला भवेद् वृद्धिः प्रासादे विशद्धस्तके | गुलेका सती वृद्धि - वित्पचाशस्तकम् ॥ नागराख्यमिदं द्वार- मुक्तं क्षीरारावि मुने ! | दशमांशे यदा हीनं द्वारं स्वर्गे मनोहरम् ।। अधिक दarriaन प्रासादे पर्वताश्रये । तावत्क्षेत्रान्तरे ज्ञातु-मद्देवमुनीश्वर ! ॥
(१) समरांगण सूत्रधार अध्याय ५५ श्लोक १२६ में चार से अधिक भाव के प्रासादों में सोन तोम अनूस बढाना लीखा है । जिसे पचास हाथ के प्रासाद का द्वारमा २०२ अंगुल का होता है ।