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दृवीयोऽध्यायः
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सपाददश हस्तश्च प्रासाद दशपञ्चके । विशहस्तोवये कार्यः साद्ध द्वादशहस्तकः ।। पञ्चविंशोदये ज्ञेयः पादोनदशपऊमकः । विशहस्ते महाप्राज्ञ ! सप्तदशोदयस्तथा ॥ सपादेकोमविशतिः पचत्रिंशे मनीबर ।। व्योमवेदे यदा हस्ते साधः स्यादेकविंशतिः ।। सतुविशतिः पादोनः पञ्चचत्वारिंशद्धस्तके ।
शतार्योदये मान तु हस्ताः स्युः पञ्चविंशतिः॥" .... प्रासाद का विस्तार एक हाथ हो तो ३३ अंगुल, दो हाथ हो तो ५५ अंगुल, तीन हाथ हो तो ७७ अंगुल, चार हाथ हो तो ६७ अंगुल, पांच हाथ का हो तो पांच हाथ, छह हाथ का हो तो पांच हाथ और २२ मंगुल, सात हाथ का हो तो छह हाथ और १७ अंगुल, माउ हाय का हो तो सात हाथ और पाठ अंगुल, मब हाथ का हो तो सात हाप मोर १६ अंगुन, दस हाय का हो तो माह हाथ, पंद्रह हाथ का हो र यस हाय और छह अंगु, बोध हाच का हो तो बारह हाथ और भारह अंगुल, पचीस हाथ का हो ता चौदह हाथ और १८ अंगुल, तीस हाथ का हो तो गह हाथ, पैतीस हाथ का हो तो १९ हाथ और छह अंगुल, चालीस हाथ का हो तो २१ हाथ पौर १२ अंगुल, पैतालीस हाप का हो तो २३ हाथ १८ अंगुल, भौर पचास हाथ का हो तो २५ हाथ का उदय करना चाहिये । प्रधान देश हाथ के बाद पांच पांच हाथ में सवा दो २ हाथ उदय क ने का विधान है। प्रासाद के उदय से पोठका उदयमान---
एकविंशत्यंशमक्ते प्रासादस्य समुच्छये ।
पञ्चादिनवभागान्तं पीठस्य पञ्चधोदयः ।।१६।। प्रासाद का बुरा से लेकर छज्जा तक जो उदयमान भावे, उसका इक्कोस भाग करके पांच, छह, सात, पाठ प्रथया नव भाग जितना पीठ का उदय सखें। इस तरह पांच प्रकार से पीठ का उदयमान होता है ।।१६।। १४४ भाग के मंडोबर (बोवार) के थरों का उदयमान
वेदवेदेन्दुभक्ते तु छाधान्त पीठमस्तकात् ।
खुरकः पञ्चभागः स्याद् विंशतिः कुम्भकस्तथा ॥२०॥ कलशोऽष्टौ द्विसाई तु कर्त्तव्यमन्तरालकम् ।
कपोतिकाष्टी मञ्ची च कर्तव्या नवभागिका ।।२१।। प्रा .