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पुनः शिला स्थापन क्रम
"नन्दां पुरः प्रदातव्यः शिलाः शेषाः प्रदक्षिणे ।
मध्ये व धरणीं स्थाप्या यथाक्रमं प्रयत्नतः ।" क्षीरावे अध्य० १०१
प्रथम नन्दा नाम की शिला को स्थापित करें, पीछे अनुक्रम से भद्रा प्रादि शिलाओंों को प्रदक्षिण क्रम से स्थापित करें और मध्य में धरणी शिला को स्थापत करें | ऐसा क्षोराव ग्रंथ में
कहा है ।
शिला के नाम --
"नन्दा भद्रा या रिक्का प्रजिता चापराि शुक्ला सोभागिनी चैव धरणी नवमी शिक्षा
अपराजित मत से शिला के नाम
नन्दा, भद्रा, जया, रिक्का, भजिता, अपराजिता, शुक्ला और
अनुकम
दो दिशामों की पाठ शिलाम्रों के नाम हैं । नववीं धरणी नाम की शिला मध्य भाग को है ।
"नन्दा भद्रा क्या पूर्णा विजया पश्चमी शिक्षा मङ्गला हाजितापराजिता च वरणोभयाः ॥*
प्रासादम
धरणी शिला का मान
नन्दा, भद्रा, जया, पूर्णा, विजया, मंगला, प्रजिता, अपराजिता, में श्रमुकम से दिशाओं की शिला के नाम है और मध्य भाग की नववीं धरणी नाम की शिला है।
"एक हस्ते तु प्रासादे शिला वेदाङ्गुला भवेत्
गुला च भवेद् वृद्धि-र्यावच्च दशहस्तकम् || दशो विशपर्यन्तं हरते हस्ते चेाता । श्रर्द्धाङ्गुला भवेद् वृद्धि-त्याशस्तकम् ॥ तृतीयांशे कृते पिण्डे तदर्थे रूपपातकम् 1 पुण्याणि च यथाकार शिलामध्ये हालंकृत
०१०१
एक हाथ के प्रासाद में चार अंगुल की शिला, दोसे दस हाथ हाथ दो २ अंगुल बढ़ा करके, ग्यारह से बीस हाथ तक के प्रासाद में और इक्कीस से पचास हाथ तक के प्रासाद में आधा २ अंगुल बढ़ा कर प्रकार पचास हाथ के प्रासाद में ४७ अंगुल के मान को समबोरस
२० १०१
"शाबाद में प्रत्येक
अंगुल कड़ा करके,
करें। इस शिला होती है।