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प्रासावमाडने
फलनामों का सामान्य मान
फालना कर्णतुल्या स्यात् भद्रं तु द्विगुणं मतम् ।
सामान्योऽयं विधिस्तुल्यो हस्ताङ गुलविनिर्गमः ॥४२॥ इति श्री सूत्रधारमण्डनविरचिते प्रासादमण्डने वास्तुशास्त्रे
मिश्रलयको नाम प्रथमोऽध्यायः ॥१॥ सब फालनायें कोने के मान के बराबर रखनी चाहिये भोर भद्र कोने से दुगुना रखना चाहिये, ऐसा सामान्य नियम है । ये सब फालनायें प्रासाद का जितने हाथ का विस्तार हो उतने अंगुल निकलती रखनी चाहिये ॥४२॥
इति श्रीपंक्ति भगवानदास जैन द्वारा अनुवादित प्रासादमण्डन के मिश्रलक्षण नाम के प्रथमाध्याय की सुबोधिनी नाम की भाषाटीका समाप्त ||१||