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द्वितीयोऽध्याय
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भ्रमणी ( परीक्रमा )
त्रिद्वय कश्रमसंयुका ज्येष्ठा मध्या कनिष्ठिका' ।
उच्छायस्य त्रिभागेन भूमणीनां समुच्छ्रयः ॥७॥ जगती में तीन भ्रमणो ( परिक्रमा )हो तो ज्येष्ठा, दो भ्रमणी हो तो मध्यमा और एक अमणी हो तो कनिष्ठा जगतो कहा जाता है। यह भ्रमणो की ऊंचाई जगतो की ऊंचाई के तीसरे २ भाग को होनी चाहिये ॥७॥
"कनिष्ठे भ्रमणी चैका मध्यमे भ्रमणीद्वयम् ।
ज्येष्ठे तिस्रो भ्रमण्यश्व साङ्गोपातिकसङ्खचया ॥" मप० सूत्र० ११५ ___ कनिष्ठ मासाद हो तो एक प्रमणी, मध्यम प्रासाद हो तो दो भ्रमणी, और ज्येष्ठ प्रातार हो तो तीन भ्रमणी अपने अंगोपांग वाली बनानी चाहिये। जगती के कोने
चतुष्कोणस्तथा सूर्य-कौगोविंशतिकोणकैः ।
अष्टाविंशति-पत्रिंशत्-कोणः स्युः पञ्च फालना ll चार कोने वाली, बारह कोने वाली, बोस कोने बाली, अट्ठाईस कोने वाली और छत्तीस कोने वाली, ये पांच प्रकार के कोने वाली जगती हैं ॥८॥ जगती की ऊंचाई का मान
प्रासादाहिस्तान्ते त्र्यंशा द्वाविंशतिकरे ।
द्वात्रिंशे चतुर्थाशा. भूतांशीचा शताबू के ll __एक से बारह हाय के विस्तार वाले प्रासाद की जगती प्रासाद के अर्ध भाग की ऊंची नमा । तेरह से माईस हाय के विस्तार वाले प्रासाद की अगती प्रासाद के तीसरे भाग की सेईस से बसीख हाथ के विस्तार वाले प्रसाद की अगती चौथे भाग की, और सेतोस से पास हाय के प्रासाद की जगती पांचवें भाग की ऊंची बनानी चाहिये III
एकहस्ते करेणोचा साईद्वयं शाश्चतुष्करे । सूर्यजेनरावार्थान्तं क्रमाद् द्वित्रियुगांशकः ॥१०॥
(१) कनीयसी'।