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" प्रासादमडने
घर बनाने की तथा उसमें प्रवेश करने की जो विधि वास्तुशास्त्र में विद्वानों ने बसलायी है, उस विधि के अनुसार देवालय में भी कार्य करें ॥४॥ देवपूजित शिवस्थान---
हिमाद्रेरुसरे पायें चारुदारुवनं' परम् ।
पावनं शङ्करस्थानं तत्र सर्वैः शिवोऽर्चितः ॥५॥ हिमालय सभा के उत्तर दिशा में
ए नोहर देताना दक्षों का सुन्दर वन है, यह महादेवजी का पवित्र तीर्थस्थान है। वहां सब देव और दैत्य मादि ने मिलकर महादेव को पूजा की ! प्रासादों की जाति
प्रासादाकारपूजाभि देवदैत्यादिभिः क्रमात् ।
चतुर्दश समुत्पन्नाः प्रासादानां सुजातयः ॥६॥ देव और दैत्य आदि सब देवों ने अनुक्रम से प्रासाद के प्राकार वाली शंकर की अनेक प्रकार में पूजा की, जिसके चौदह लोक के देवों द्वारा भिन्न भिन्न रूप से पूजित होने से पौवह प्रकार की प्रासाद की जाति उत्पन्न हुई ॥६॥ प्रासादोत्पत्ति को चौदह जाति"यत्र येषां कृता पूजा तत्र तनामकास्तते ।
: प्रासादानां समस्तानां कथयिष्याम्पनुक्रमम् ।। सुरैस्तु नागराः ख्याता द्राविडा दानवेन्द्रकः । लतिनाश्चेव गन्धर्वे-र्यक्षेश्वारि विमानमाः ॥ विद्याधरैमिश्रकाश्च वसुभिश्च कराटकाः । सान्धाराश्चोरगे: ख्याताः नरेन्द्र भूमिजास्तथा । विमाननागरच्छन्दाः सूर्यलोकसमुद्भवाः । नक्षत्राधिपलोकोक्ताश्चन्दा विमानपुष्पकाः ।। पार्वतोसम्भवाः सेना वलभ्याकारसंस्थिताः । हरसिद्धयादिदेवोभिः कार्याः सिंहावलोकनाः ।। व्यन्तरस्थितस्तु फांसनाकारिणो मताः । इन्द्रलोकसमुद्भुता रथाश्च विविथा मताः ।।"
अपराजितपृच्छा सू० १०६ (१) देवगुरु (२) 'च