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प्रासादमण्डने
प्रासाद का निर्माण समय
शुभलग्ने सुनक्षत्रे' पञ्चग्रहबलान्विते ।
माससंक्रान्तियन्सादि-गिपिधकालयजिते ॥११॥ शुभ लग्न और शुभ नक्षत्र में, पांच ग्रह ( सूर्य, चन्द्र, बुध, गुरु और शुक्र ) के बलवान् होने पर, तथा मास, संझान्ति और पल्ला प्रादि के निषेव समय को छोड़ कर प्रासाद बनाना श्वारभ करें ।।१।। भूमि परीक्षा--
सर्वदिशु प्रवाहो वा प्रागुदकशङ्करप्लवाम् ।। भनि परीच्य संसिञ्चेत् पञ्चमध्येन कोविदः ।।१२।।
मणिसुवर्णरूप्येण विद्रुमेण फलेन का । प्रथम प्रासाद, बनाने को भूमि की परीक्षा करनी चाहिये । जिस भूमि पर चारों दिशामों में पानी का प्रवाह चलता हो अर्थात वह चारों दिशामों में नीची हो और बीच में ऊंची हो, अथवा पूर्व, उत्तर और ईशान कोनों में नोची हो, अर्थात् इन तीन दिशाओं में पानी का प्रवाह जाता हो तो ऐसी भूमि शुभदायक है । विशेष जानने के लिये देशों अपराजित पृच्छा सूत्र० ५१.
इस प्रकार भूमिको परीक्षा करके विद्वान् जन पञ्च मव्य ( गाय का दूध, दही, घी, मूत्र और गोबर ) से उस भूमि पर छिड़काव करें तथा मणि, सोना, रूपा, मूगा और फलों से भूमि को पवित्र कर ॥१२॥ वास्तुमंडल लिखने का पदार्थ-----
चतुःषष्टिपदे वास्तु लिखेदापि समशः ॥१३॥ पिप्टेन धाक्षतः शुद्ध स्तनो वास्तु समस्येन् ।
पूर्वोक्तेन विधानेन बलिपुप्पैच' पूजयेत् ।।१४।। प्रासाद के प्रारंभ होने से समाप्त होने तक उतने समय में सात अथवा चौदह बार चौसठ पद का प्रयवा एकसौ पद का वास्तुमण्डल पूजा जाता है । यह शुद्ध प्राटा अथवा शुद्ध चावलों से बनाना चाहिये । पश्चात् उसे पूर्वाचार्यों द्वारा बतलाई गई विधि के अनुसार बलि और पुष्प आदि से पूजना चाहिये ॥१३॥१४॥ (१) शुभः च (२) अब (३) बलिष्यादिपूजनैः । * विशेष जानने के लिये देखें स्वयंारा अनुदित राजवल्लभमंडन में दूसरा अध्याय ।