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जिस दिशा में वत्स का मुख हो, उस दिशा में तथा मुख के सामने वाली दिशा में खात, देव प्रतिष्ठा द्वार प्रतिष्ठा श्रादि कार्य करना शास्त्र में वर्जित है, परन्तु वत्समुख एक दिशा में तीन तीन मास तक रहता है। इसलिये तीन मास तक उक्त कार्य को नहीं रोकने के लिये ठक्कुर फेरु कृत 'वत्थुसार पर' ० १ गाथा २० में विशेष रूप से बतलाया है कि
"गभूमि सत्तभाए पर यह तिहि तीस तिहि दहक्ख कमा ६ दिसंखा चउदिसि सिरपुच्छस मंकि बच्छठि ॥"
घर या प्रासाद की भूमि का प्रत्येक दिशा में सात सात भाग करना, उनमें अनुक्रम से प्रथम भाग में पांच दिन दूसरे में दस दिन, तीसरे में पंद्रह दिन, बोधे में तीस दिन, पांचवें में पंद्रह दिन, छट्टो में दस दिन और सातवें भाग में पांच दिन बरस का मुख रहता है। इस प्रकार भूमि को चारों दिशाओं में दिन संख्या समझना चाहिये। जिस ग्रंक पर वत्स का मुख हो, उसी अंक के सामने वाले बराबर के अंक पर वत्स की पूछ रहती है। इस प्रकार की पल्स की स्थिति है ।
जैसे कन्याराशि पर सूर्य हो,
और यदि पूर्व दिशा में खात धादि कार्य करने की प्रावश्यकता हो तो कन्याराशि को प्रथम पांच दिन तक प्रथम भाग में खात प्रादि कार्य नहीं करना चाहिये, परन्तु दूसरे छह भागों में से किसी एक भाग में शुभ मुहूर्त में कार्य कर सकते हैं। एवं छट्ठे से पंद्रहवें दिन तक दूसरे भाग में और सोलहवें से तीस दिन तक तीसरे भाग में कार्य
वायव्य
=
१० १५
५
१०
५
१५ ३० १५ १० मिथुन मिथुन मिथुन के के सिंह सिंह सिंह
उत्तर
पश्चिम
म
भूमि घर या प्रासाद करने की
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अपराजित पृच्छ सूत्र ६२ में कहा है कि-
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नहीं करें। तुला राशि के सूर्य में तीस दिन तक मध्य के चौथे भाग
में कार्य नहीं करें। वृश्चिक राशि के सूर्य में पहले पंद्रह दिन पांचवें भाग में, सोलहवें से पचीसवें दिन तक छट्ठे भाग में और छबोसवें से तोसवें दिन तक सातमें भाग में कार्य नहीं करें। इसी प्रकार प्रत्येक दिशा में प्रत्येक संक्रांति के दिन संख्या समझ लेनी चाहिये ।
"देवागारं गृहं यत्र न कुर्याच्छिरः सन्मुखम् । मृत्युरोगभया नित्यं शस्तं च कुक्षिसम्भवम् ।।"