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प्रासाघमारने
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पाम
नया
खात विधि
नागवास्तु समालोक्य कुर्यात् खातविधि' सुधीः ।
पाषाणान्तं जलान्तं वा ततः कूर्म निवेशयेत् ॥२४॥ प्रथम शेषनाग चक्र का विचार करके विज्ञान शिल्पी खात विधि करें। नींव को खोदने से भूमि में पाषाण अथवा पानी निकल आय, उसके ऊपर कर्म (कच्छुपा) की स्थापना करें। नागवास्तु--
___ "कन्यादौ रक्तिस्त्रये फणीमुखं पूर्वादि किमात्"
ऐसा राजवल्लभ मण्डन के अध्याय प्रथम श्लोक २२ में कहा है किकन्या, तुला और वृश्चिक राशि का सूर्य हो तब शेषमाग का मुख पूर्व दिशा में बन, मार कुम्भ राशि का सूर्य हो तब दक्षिण दिशा में; मोन, मेष और वृष राशि का सूर्य हो तब पश्चिम दिया में, मिथुन कर्क और सिंह राशि का सूर्य हो तब उत्तर में शेषनाग का मुख रहता है।
"पूर्वास्येऽनिलस्वातनं यममुखे खा शिवे कारये
च्छीर्षे पश्चिममे च वह्नि खननं सौम्ये सनेनैऋते ॥" ऐसा राजवल्लभ मण्डन के अध्याय प्रथम श्लोक २४ में कहा है कि-पोषनाग का मुस पूर्व दिशा में हो तो वायुकोण में, दक्षिण दिशा में हो तो ईशान कोण में, पश्चिम दिशा में हो तो मग्निकोण में और उत्तर दिशा में हो तो नैऋत्य कोण में बात करना चाहिये । (१) वास्तुविधि