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प्रथमोऽध्यायः
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शङ्कोर्नेत्रगुणे तु मण्डलवरे छायाद्वयान्मत्स्ययोजर्जाता यत्र युतिस्तु शा, ललतो याम्योनरे स्तः स्फुटे ।"
राज० प्र० १ श्लो०११ रात्रि में दिक साधन--
सप्तर्षि और ध्रुव के बीच में एक गज के अन्तर वाले दो तारा है जो ध्रुब के चारों तरफ घूमते हैं उनको मार्कटिका कहते हैं । यह मार्कटिका और ध्रुव जब बराबर समसूत्र में ग्रावे, तम एक प्रवलंब लटकावें और उसके सामने दक्षिण की तरफ एक दीपक रखें। यदि दीपक का अन माग, अवलंब और ध्र व ये तीनों बराबर समसूत्र में दिखाई पड़े तो उसे उत्तर दिशा जाने । अवलंब और दीपक के सामसूत्र एक रेखा खींची जाय तो वह उत्तर दक्षिण रेखा होगी।
दिन में दिक्साधन करना हो तो समतल भूमि के उपर बत्तीस प्रमुल का एक गोल सक बनावे, उसके मध्य बिन्दु पर एक बारह गुल के नाप का शंकु रखें । पश्चात् दिन के पूर्वार्ध में देखें कि शंकुकी छाया गोल में जिस जगह प्रवेश करें, वहां एक चिह्न करें बह पश्चिम दिशा होगी और दिन के उत्तरार्ध में जहाँ वाहर निकलें वहां एक बिन्दु करें यह पूर्व दिशा होगी । पीछे पूर्व और पश्चिम को इन दोनों बिन्दुओं तक एक सरल रेखा खींची जाम तो यह पूर्व पश्चिम रेखा होगी, इसको व्यासाई मान करके दो गोल बनावें, जिसे एक मत्स्य के जैसी प्राकृति होगी, उसके ऊपर और नीचे के योग बिन्दु से एक सरल रेखा खींची जाय तो यह उत्तर दक्षिण रेखा होगों । देखो नीचे का दिवसाधन चक्र--- चक्र परिचय
बत्तीस अंगुल का इ उ ए' एक गोल है, उसका मध्य बिन्दु 'प्र' है । उसके. आर बारह अंगुल का एक शंकु रखकर दिन के पूर्वार्द्ध में देखा गया तो शकुकी छाया गोल के 'क' बिन्दु के पास प्रवेश करती है, यह पश्चिम दिशा जाने और दिनाद्ध के बाद 'च' बिन्दु के पास बाहर निकलती है। यह पूर्व दिशा आने । इन 'क' और 'च' दोनों बिन्दु तक एक सरल रेखा खींचो जाय तो यह पूर्व पश्चिम रेखा होती है । इसको व्यासार्द्ध मान कर 'क' बिन्दु से 'च छ ज और दूसरा 'च' बिन्दु से 'क ख ग ऐसे दो गोल बनावें तो पूर्व पश्चिम रेखा के अार एक मछली के जैसी प्राकृति हो जाती है । उसके मध्य बिन्दु 'अ' से एक सरल रेखा खींची जाय जो गोलके दोनों स्पर्श बिन्दु से बाहर निकल आय. यह उत्तर दक्षिण रेखा होती है ।
- उपरोक्त प्रकार से भी वास्तविक दिशा का ज्ञान नहीं होता, क्योकि अयनाश के कारण ध्रुब का सारा एवं कृसिकादिन ठीक दिशा में उदय नहीं होता। जिसे प्रामकल नवीन प्राविष्कार दिक साधन मंत्र (कुतुबनुमा) से करना चाहिये।
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