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प्रथमोऽध्याय
..ज्योतिष शास्त्र के मुहूर्त प्रन्थों में अन्य प्रकार से कहा है। मुहर्स मिसामरिण के वास्तु प्रकरण श्लोक १६ को टोका में विश्वकर्मा का प्रमाण देकर लिखा है कि
शामतः सहि काला, यि रसपेट् विदिक्षुः ।
शेषस्य बास्तोसमध्यधुच्छ, त्रयं परित्यज्म सनेच सुर्यम् ।" शेषनाग प्रथम ईशामकोण से चलता है, उसका मुख्य नाभि और पूछ सष्टिमार्ग को छोड़कर विपरीत विदिशा में रहता है । अर्थात् ईशान में मुख, कायुकोण में नाभि और नैऋत्य कोरा में पूछ रहता है । इसलिये इन तीनों विदिशात्रों को छोड़कर चोथा निकोण खाली रहता है, उसमें प्रथम खात करना चाहिये। राहु (नाग) मुल----
"देवालमे गेहविधी जलाधये, राहोर्मुखं शम्भुदिशो दिलोमतः । मीमा सिंहाई मृगार्क सस्त्रिभे, लाते मुखात् पृष्ठविदिकशुभाभवेत् ।।"
देवालय का खात मुहूर्त करते समय राह का मुम्ब यदि मीन, मेष और वृषभ राशि का सूर्य हो तब ईशान कोण में, मिथुन, कर्क और सिंह राशि का सूर्य हो तर वायुकोण में, कन्या तुला और वृश्चिक राशि का सूर्य हो तब नैऋत्यकोण में, धन, मकर और कुम्भ राशि का सूर्य हो तब अग्निकोण में, राहु का मुख रहता है ।
घरके सात मुहूर्त के समय नाग का मुख सिंह कन्या भोर सुला राशि के सूर्य में ईशान कोण में, वृक्षिक धन और मकर राशि के सूर्य में वायुकोण में, कुम्भ मीन और मेषराशि के सूर्य में नैऋत्यकोरण में, वृष मिथुन और कर्क राशि के सूर्य में अग्निकोण में राहु का मुख रहता है।
कुमा, बागडी, तालाब आदि जलाश्रयको प्रारंभ मदते समय राह पमुख मकर कुम्भ और मीन राशि के सूर्य में ईशान कोण में, मेष योर बिजुन राशि के पूर्व में वायुकोस में, कर्क सिंह और कन्या राशि के सूर्म में नैऋत्यकोख में, तुमा पश्चिक और मन राखी के पूर्व में मग्निकोण में राहु का मुख रहता है। .
जिस विदिशा में राहु का मुख हो, उसके पीछे को विदिशा में सात करमा शुभ है। जैसे-ईशान कोण में मुखको अग्निकोण में, मामुकोण में मुल हो तो ईशानकोण में, नेय कोण में मुसा तो वायुकोण में और अग्निकोण में मुख हो तो मत्य कोण में खात करना शुभ है।
.राहमुलाने नाममुख पा पास्तुमुल इसमें बहुत पवार । कोई टिम और कोई निमोम काम से भो ! free बाने के लिए देखें सारा मनुवादित राजबल्दा मरन अंथ'।
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