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प्रथम-परिच्छेद ]
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इसके अतिरिक्त मथुरा के स्तूप में से एक जैन श्रमण की मूर्ति मिली है, जिस पर “कण्ह" नाम खुदा हुआ मिलता है । ये "कण्ह" प्राचार्य दिगम्बर सम्प्रदाय प्रवर्तक शिवभूति मुनि के गुरु "कृष्ण" हों तो पाश्चर्य नहीं, क्योंकि वह मूर्ति अर्धनग्न होते हुए भी उसके कटिभाग में प्राचीन निर्ग्रन्थ श्रमणों द्वारा नग्नता ढाँकने के निमित्त रक्खे जाते "अग्रावतार" नामक वस्त्र-खण्ड की निशानी देखी जाती है। यह "अग्रावतार" प्रसिद्ध स्थविर प्रार्य रक्षित के समय तक श्रमणों में व्यवहत होता था। बाद में धीरे-धीरे छोटा कटिवस्त्र जिसे "चुल्लपट्टक" (छोटा पट्टक) कहते थे, श्रमण कमर में बांधने लगे तब से प्राचीन "अग्रावतार वस्त्रखण्ड' व्यवहार में से निकल गया।
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