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चतुर्थ-परिच्छेद ]
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तुम अपनी रचनाएँ हमको दिखायो । शाह श्रीवन्त ने अपने काव्य उनको दिखाए, देखकर ब्राह्मण बोले, वरिपक में ऐसी शक्ति नहीं होती, यह तो तब सच्च माने जो इस डेहली में रहे हुए पलंग का वर्णन करके हेमको सुनायो । तब शाह श्रीवन्त ने उस पलंग का धार्मिक दृष्टि से वर्णन किया, जिसे सुनकर ब्राह्मण बहुत ही खुश हुए, उन्होंने कहा - हम ब्राह्मण हैं, फिर भी हमसे इतना जल्दो काव्य बनना कठिन हैं। ____ शाह श्रीवन्त सर्वत्र विचरते, परन्तु शाह घोरा; शाह सरपति, जो बादशाह के वजीरशाह श्री कडुवा के समवायो थे उन्होंने शाह श्रीवन्त को बादशाह से मिलाया, वहां लहुग्रा व्यास के साथ दो दिन चर्चा हुई, एक दिन लहुप्रा व्यास ने बादशाद से कहा - श्रीवन्त आदे के एक टुकड़े में अनन्त जीव बताता है, इस पर से बादशाह ने श्रीवन्त को अपने पास बुलाया, नौकर बुलाने गए । श्रीवन्त ने नौकर से कहा मैं अभी आता हूँ, पर यह तो कहो कि क्या काम है ? सेवक ने कहा - मैं नहीं जानता, पर लहुआ व्यास अदरख का टुकड़ा लेकर पाया है और वह बुलाता हैं । शाह श्रीवन्त बादशाह की तरफ चला और उसकी दृष्टि मर्यादा में एक गाय को देखकर श्रीवन्त उसकी पूंछ देखने लगा। बादशाह के पास पहुंचने पर श्रीवन्त को बादशाह ने पूछा, श्रीवन्त गाप की पूछ में क्या देखा ? श्रीवन्त ने कहा - लहुप्रा व्यास गाय के पूछ में ३३ करोड़ देवता बताया है, उनको देखता था । बादशाह ने पूछा – क्यों लहुप्रा क्या बात है ? लहुप्रा ने कहा - जो हां हमारे शास्त्र में ऐसा लिखा है और श्रीवन्त ऐसा कहता है - प्रादे के टुकड़े में अनन्त जोव होते हैं, इस पर श्रीवन्त ने कहा - जी हां, हमारे शास्त्र में ऐसा लिखा है । जो लहुप्रा व्यास गाय की पूंछ में देव दिखाये तो मैं जीव दिखाउँ । व्यास ने कहा - देव दीखते नहीं हैं । शास्त्र ही प्रमाण है, तब शाह श्रीवन्त ने मादा खंड़ बोया, उसके खंड - खंड में सजीवता प्रमाणित की।
शाह श्रीवन्त चांपानेर के सुलतान के पास भी रहते थे, उस समय सं० १५७६ में खम्भात के पास कंसारी गांव में कडुवामति के मन्दिर में जो पर समवाय का आदमी भो दर्शनार्थ पाए वह गगड़ी उतार कर जिनवन्दन
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