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[ पट्टावलो-पराग
के ध्यान में रहते हैं, क्योंकि मतान्तरों, गच्छान्तरों को देखकर उन पर हमारी आस्था नहीं आती। इसका धर्मसागरजी ने प्रत्युत्तर नहीं दिया ।
सं० १६४६ का च र्मास शाह श्री रत्नपाल ने खम्भात में किया, वहां संघवी अमीपाल, सो० महीपाल, सो० पनीया, सो० लकमसी ने शाहश्री के वचन सुनकर सिद्धाचल का संघ निकाला, शाहश्री प्रमुख अनेक संवरियों के साथ खम्भात तथा दूसरे गांवों का संघ यात्रा कर सकुशल लौटा ।
सं० १६५० में राजनगर में चतुर्मास किया, वहां सोन बाई ने अनशन किया और ६१वें दिन सोनबाई दिवंगत हुई ।
सं० १६५३ का चतुर्मासक शाहश्री ने पाटन में किया । वहां के निवासो मेहता लालजी ने शंखेश्वर का संघ निकाला।
सं० १६५४ में शाह श्री रत्नपाल ने खम्भात में शाह माहवजी को संवरी किया ।
सं० १६५५ में शाह जिनदास ने शाह तेजपाल को संवरी किया।
सं० १६५६ में शाह श्री रत्नपाल ने राजनगर में चतुर्मास किया । वहां के निवासी भणशाली जीवराज और भरणशाली देवा ने सारे सौराष्ट्र का संघ निकाला, गिरनार शत्रुजय, देव का पाटन, दीव प्रमुख सर्वत्र संघ के साथ शाहश्री प्रादि सर्व संवरियों ने यात्रा की और सकुशल वापस लौटे ।
सं० १६५८ में शाह राजमल दिवंगत हुए।
सं० १६५६ में वस्तुपाल के बिम्ब का प्रवेश शाहश्री रत्नपाल ने करवाया।
सं० १६६० में शाहश्री रत्नपाल ने राजनगर में धतुर्मास किया। वहां के भरणशाली जीवराज तथा भणशाली देवा ने प्राबु, गोडवाड़, राणपुर मादि का संघ निकाला, खंभात के साधर्मी तथा पाटन, राधनपुर, थराद के
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