Book Title: Pattavali Parag Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 522
________________ पृष्ठांक पंक्त्य ५३६ ५४ ३ ५३ or "" sror ५५ Kc ६५७ ६५ २३ अशुद्ध स्कन्दि सघ स्थविर श्रमणसघ सघ सगोत्त वि० स० दा हजार शिलाण्ट निर्वाण स० बाता प्राश्चय परम्पस "जमालि खडे बचा प्रयोग बनहा शयाक्रियोपयुक्त श्रमणो संध जाव करते हैं पकवान सिद्धान्त लक्ष्मोधर रामयादि तट पर ये स्थित गोष्ठामाल सम्यववादो 1 9 822 ६ ६८ २४ स्कंदिल संघस्थविर श्रमण संघ संघ सगोतं वि० सं० दो हजार शिलापट्ट निवारण सं० बातों आश्चर्य परम्परा “जमालि" खडा वचन प्रयोग बनता शयन क्रियोपयुक्त श्रमणीसंघ जीव करता है पवान्न सिद्धान्त लक्ष्मोघर समयादि तट पर थे स्थित गोष्ठामाहिल सम्यग् वादी ६६६ ६६ २७ ७० १६ ७० २२ ७१ ११ ७१ १६ ७४६ ७५ ७५ ७६ __८१ २१ २२ २१ १६ ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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