Book Title: Pattavali Parag Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

View full book text
Previous | Next

Page 534
________________ अशुद्ध वज्रशाख विद्याघर मानला भार्ग सस्बन्ध नामों से मी एकमत्य तब्र कटार सूत्रों में वहार सूत्र जनवाणी सुतागमे मुनिवय सस्था बैटकर चैत्य इन नाम चैतस् प्रायश्चित शिष्यि हुआ या जाने का दक्षिणात्य नयां स्थानक मूर्तियां प्रप्रमाणिक Jain Education International 2010_05 [१५] पृष्ठांक पंक्त्य ४४३ १२ ४४३ १६ ૪૪૬ ५ ૪૪ ४४५ ४४५ ४४५ ૪૪૨ ४५० ४५१ ४५१ ४५१ ४५३ ४५.३ ४५३ ४५६ ४५६ ४५७ १२ १६ १७ १८ ८ ४६१ ४६४ ૪૪ ४६५ ५ ३ १४ २६ १८ २० २३ २० २१ १० ४५७ १५ ४५८ १ ४५८ १६ ४६० १३ ४६० ४६१ २० २ २३ £ ११ २० For Private & Personal Use Only शुद्ध वज्रशाखा विद्याधर मानना मा सम्बन्ध नामों से भी ऐकमत्य तब कत्तर सूत्र में से व्यवहार सूत्र जिनवाणी सुत्तागमे मुनिवर्यं संस्था बैठकर चैत्यं इस नाम चैतस प्रायश्चित्त शिष्य हुआ था जाने की दाक्षिणात्य नया स्थानक मूर्तियों अप्रामाणिक www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 532 533 534 535 536 537 538