Book Title: Pattavali Parag Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 526
________________ क्रमशः * or n प्रशुद्ध कामः इसी पट्टावली के उत्यापिता तया प० दयालवि० गुणसमुन्द्रसूरि पाश्वचन्द्र आचार्यपद स० मानतुग सूरि सघ सभा रवखे अन्यथा सधुनों ने समुदयों के चतुर्मास्य दुर्गाचर्य कालान्तर से गर्गचार्य धर्म भवना परलो. चत्य की पृष्ठांक पंक्त्या २२० । २२० २० २२० २० २२१ २२४ २२७ २२८ २२६ २२६ २३१७ २४५ २४५ २० २४७ २४७ ११ २४७ १७ २४७ २४६ २४६ २२ २४६ २२ २४६ २७ २४६ २५१ १३ २५१ १४ २५१ १६ पट्टाबली में उत्थापिता तथा पं० दयालवि० गुणसमुद्रसूरि पार्श्वचन्द्र आचार्यपद सं. मानतुंग सूरि संघ सभा रक्खे प्रन्यदा साधुमों ने समुदायों के चातुर्मास्य दुगाचार्य कालान्तर में गर्गाचार्य धर्म भावना परलोक चैत्य की पाम्रदेव सरि सम्पापक जिन नवा कथयत स० १३.५ " " २५८८ २५८ १३ २५६ १३ पाम्रदेव सूरि सम्पादक जिनं नत्वा कथयतः सं. १३०५ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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