Book Title: Pattavali Parag Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 525
________________ प्रशुद्ध वहीं प्रश्नादक तैय्यार वटियां निश्चित [ ६ ] पृष्ठांक पंक्त्यक १८८ १३ १८८ १४ १८८ १५ १८६ २ १८६ १५ १६१ २१ १६१ २१ वह नकी वृन्तान्त १६१ वहां प्रश्नादिक तैयार वहियां निश्चित यह नकी वृत्तान्त और संघवी संघविन संघवी उत्तराधिकारी अपने कुछ १९३ १६४ . १६४ अंतिम १६५ १९५९ १६६ १६ सघवी संघविव संघवी उतराधिकारी प्रपये कुछ पहुंचते पट्ट पर मेहे एयो सहुसने यतियों की पहुंचने निरुतर १६७ २५ २०० ७ २०० १६ २०२ १० २०२ २३ २०३ १६ २०३ १६ २०६६ २०६६ २१६ ३ २१९ २१६४ २२० पट्टपर मेहेल्यो सहुसेन यतियों को निरुत्तर पार्टियां विजयमान सं० १६७३ विजयसेन त्रीसमइ पाटि भवियण मनरंजइ विजय जिनेन्द्र पार्टियों विजयभान स० विजयसेन भीसमइ पाटिन-विग्रण जिनरंजइ विजय जितेन्द्र ام or m mr » www.jainelibrary.org Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only

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