Book Title: Pattavali Parag Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

View full book text
Previous | Next

Page 510
________________ चतुर्थ-परिच्छेद ] [ ५०६ -- देवा प्रमुख सब शामिल हुए। शाह श्री जिनदास, शाह तेजपाल, शाह खेतसिंह, शाह चौथा, शाह ऋषभदास, शाह कल्याण, शाह जीवा, शाह पूजिया, शाह रुडा प्रमुख बहुतेरे संवरी शत्रुञ्जय की यात्रा करके सकुशल राजनगर पाए, भणशाली देवा ने सार्मिक वात्सल्य किया, उसके ऊपर सात संघ वात्सल्य थराद के संघ ने किए, इस प्रकार सकुशल संघ पाटन पहुँचा। शाहश्री ने वहां चतुर्मास किया। शाह तेजपाल और कल्याण ने राधनपुर चतुर्मासक किया। शाहश्री पाटन से राधनपुर गए, वहां से थराद गए, सो० तेजपाल, शाह कल्याण, शाह जीवा साथ में थे, वहां ४५ दिन रहे, वहां पर शाह तेजपाल ने "नागनत्तुग्रा" की सज्झाई बनाई, वहां से वाव, सोहीगाँव, मोरवाड़ा, महिमदाबाद आदि स्थानों में विचरते हुए राजनगर आए। सं० १६६७ में शाहश्री ने चतुर्मास खम्भात में किया और शाह तेजपाल ने राजनगर में, शाह तेजपाल ने "दशपदी" और "पागडिसा पंचदशी" बनाई। शाह श्रीवन्त १६६८ में राजनगर में और तेजपाल खम्भात में रहे। सं० १६६६ में खम्भात में चतुर्मास रहे, वहाँ शाहश्री के शरीर में बीमारी उत्पन्न हुई और शाह तेजपाल उस समय राजनगर थे। ___ सं० १६७० में शाहश्री ने राजनगर में चतुर्मास किया और शाहश्री के आदेश से शाह तेजपाल तथा कल्याण थराद रहे। शाहश्री ने शाह विजयचन्द्र को संवरी बनाया। इसी वर्ष में शाहश्री का शरीर रक्त-पित्त की पीडा से व्याप्त हुआ। शाहश्री ने संघ को इकट्ठा किया और धूमधाम के साथ भणशाली देवा के चैत्य में पाकर देववन्दन किया, फिर उपाश्रय पाकर शाह श्री तेजपाल को अपने पट्ट पर प्रतिष्ठित किया और शाहश्री अनशन-पूर्वक दिवंगत हुए। शाह श्री जिनदास १७ वर्ष गृहस्थ रूप में, ३३ वर्ष सामान्य संवरी के रूप में और ६ वर्ष पट्टधर के रूप में रहकर अपने पट्टधर शाह श्री तेजपाल को स्थापन कर ५६ वर्ष का प्रायुष्य पूरा कर स्वर्गवासी हुए। ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538