Book Title: Pattavali Parag Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 515
________________ ५१४ ] [ पट्टावलो-पराग कडुप्रामतियों ने उसको हमेशा की रीति से बैठने को कहा - पर लालजी ने नहीं माना और बात खींचतान में पड़ गई। गांधी हरजीवन ने राधनपुर के तपागच्छ को लिखा, "यहाँ कडुअामतो बहुत हैं, अगर आप हमारी मदद नहीं करेंगे तो हम भी तपा मिटकर कडुवामती बन जायेंगे।" सं० १६७६ के भाद्रवा सुदि २ के दिन पत्र पहुंचा और सभा में पढ़ा गया, पंन्यास ने कहा - धर्म के खातिर चक्रवर्ती का सैन्य मार डालने पर भी पाप नहीं लगता, तपा का साथ कढुवामती का और कडुवामती का साथ तपा का उपाश्रय गिराने आये, उपाश्रय में कुछ पौषधिक बैठे थे, चित्त को स्थिर कर बैठे रहे, तपा के साथ ने कडुवामती उपाश्रय का छप्पर गिरा दिया, अन्दर बैठे हुए स्थिर रहे और कहने लगे - हमसे आपको कोई भय नहीं है, हमारे शाहश्री का यह उपदेश नहीं है कि हम किसो को मारें, बाद में मेहता रत्ना के पुत्र म० बीरजी के पौत्र म० संघवी ने दूसरे मनुष्यों को बुलाकर तपा के साथ को रोका, वह छप्पर गिराकर चला गया, बाद में वहाँ के कडुवामतियों ने थराद अपने सामियों को लिखा कि आज यहाँ इस प्रकार की घटना घटी है, पत्र पढ़कर सबको दुःख हुअा, कितने कडुवामती तपा का उपाश्रय गिराने के लिए तैयार हुए, पर शाहश्रो खेतसी ने रोका, दोसी रत्ना, सेठ नाथा आदि ने उन्हें समझाकर रोका, बाद में थराद का संघ अजमेर सुल्तान शाह सलीम के पास जाने को रवाना हुअा। राधनपुर का तपा सेठ बाला भी बादशाह के पास जाने को रवाना हुप्रा, इतने में राजनगर से भ० देवापुत्र खीमजी तथा तपा का शान्तिदास भी बादशाह के पास जाने को रवाना हुआ, सब अजमेर पहुंचे, थराद का संघ भण. खीमजी को मिलने गया। खीमजी ने कहा – यदि द्रव्य का काम हो तो मुझे कहना, शाहश्री कडुवा के समवाय की बात ऊँची रहे वैसे करना । संघ के बादशाह के पास जाने के पहले, संघवी चन्दु तपा ने मेहनत कर संघ को अपने घर लेजाकर जिमाया और तपा के साथ से उपाश्रय ठीक करवाने की कबूलात करवायी और रुपया १० केसर खाते देने का निश्चय हुआ, इस प्रकार समाधान कर सब अपने स्थान गए। कडुवामती सकुशल थराद पाए, घर आने के बाद राधनपुरी तपा समाज ने कडुवा का उपाश्रय ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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