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[ पट्टावली-पराग
अहमदाबाद से भणशाली मूलिया, शा० देवजो, शा० लटकन, शा० वस्तुपाल, प० वीरदास, शा० हीरजी प्रमुख संघ में पाए । भगशाली देवा बड़े ठाट से चले, साथ में हाथी, घोड़े, पालको प्रमुख सामग्री के साथ अपने स्वजन कुटुम्ब के साथ भरणशाली देवा, भार्या देवलदे, पुत्र रूपजी, भ० खीमजी, पौत्र भ० लालजी, भ० देवा की बहिन रुपाई, बेटो राजबाई, सोनाई, भ० भाई कोका, भतीजे भ० विजयराज तथा भणशाली जीवराज के पुत्र भ० सूरजी, भार्या सुजाणदे, तत्पुत्र भ. समरसिंह, भ० अमरसिंह आदि परिवार के साथ सघ ने प्रयाग किया।
प्रथम श्री शंखेश्वर की यात्रा कर वहां से पाटन आए, वहां संघ वात्सल्य दो हुए, वहाँ से संघ सिद्धपुर यात्रा करते पाबु पहुँचे, अचलगढ़ होकर देलवाड़ा गए, पूजादि उत्सव हुए, वहाँ से फिर अचलगढ़ होकर नीचे उतरे और पारासरण की यात्रार्थ गए, वहाँ से ईडर यात्रा कर तारंगा गए। तारंगा से वडनगर पहुँचे, वहाँ भ० देवा ने संघ वात्सल्य किया, वडनगर के नागर ज्ञातीय बोहरा जीवा ने संघ वात्सल्य किया। भ० कोका ने वस्त्रार्पण किया और भ० समरसिंह ने मुद्रिका को प्रभावना की, इस प्रकार यात्रा करके पटनो, राधनपुरी, संघ को विदा किया और भणशाली शाह देवा सकुशल राजनगर पहुंचे और शाहश्री आदि सांवरियों ने भणशाली देवा के आग्रह से सं० १६७५ का चतुर्मास वहीं किया। शाह कल्याण को चातुर्मास्य के लिए खम्भात भेजा। इस वर्ष में बाई वाली ने अनशन किया और शाह खेतसी, शाह चौथा, शाह ऋषभदास प्रमुख संवरियों की निर्यामरणा से चित्त स्थिर रखकर ५७ वें दिन वह दिवंगत हुई। इस चतुर्मास्य में शाह श्री तेजपाल ने "सप्तप्रश्नी" आदि अनेक प्रकरणों की रचना को और राजनगर निवासी भणशालो शाह पचायत ने छरो पैदल संघ निकाला। चैत्रादि स० १६७५ के कार्तिक वदि १३ के दिन संघ का प्रयाण हुमा, साथ में हाथी, घोड़े, रथ, पालकी प्रमुख साज समान आदि था । पाटन, राधनपुर, खम्भात, आदि स्थानों के भी सार्मिक समाज संघ में सम्मिलित हुए, बड़े उत्सव के साथ यात्रा प्रभावना हुई और संघ वहां से सकुशल वापस राजनगर आया, अहमदाबाद में भ० देवा ने
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