Book Title: Pattavali Parag Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 511
________________ ५१० ] [ पट्टावली-पराग ८, शाह श्री जिनदास के पट्टधर शाह तेजपाल : शाह तेजपाल का जन्म खम्भात में सो० वस्तुपाल की भार्या कीकी की कोख से हुआ था। शाह श्री तेजपाल शाह श्री जिनदास के वचन से संवरी हुआ था, अच्छा विद्वान् था। भट्ट पुष्कर मिश्र के पास चिन्तामरिण शास्त्र पढ़ा था, पढ़ाई का मेहनताना प्रतिदिन का एक रुपया दिया जाता था। शाह श्री तेजपाल थराद में ठहरे, उस वक्त अनेक व्रत पच्चक्खाण हए। मोदी हंसराज की माता जीवी ने अनशन किया, २२ दिन तक अनशन पालकर बाई ने आयुष्य समाप्त किया, बाई का दहन-संस्कार कर संघ समस्त उपाश्रय आया, शाहश्री के मुख से श्ल क सुनकर सब अपने स्थान गए। उसके बाद शाहश्री राजनगर पाए और भणशालो देवा ने स्वागत किया, उपाश्रय में जाकर श्लोक सुनाया। शाहश्री १६७१ में पाटन में परीख लटकन के आग्रह से चतुर्मासक रहे। वहां श्री तेजपाल ने "संस्कृत-दीपोत्सवकल्प" बनाया। चतुर्विशति जिनस्तोत्र, छन्द, स्तुति वगैरह रचे । शा० कल्याण खंभात में चतुर्मासक थे, राजनगर निवासी भणशाली देवा ने छरीपालते शत्रुजय जाने की इच्छा की। चतुर्मास के बाद शाहश्री को वहां बुलाया और कार्तिक वदि ५ को शुभ मुहूर्त में यात्रार्थ प्रयाण किया, साथ में बहुतेरे परसमवायी थे। अनेक साधर्मी पाटन निवासी परी० लटकन, खंभात के संघवी अमीपाल, सो० हरजी प्रमुख संघ और परगच्छीय यात्रिक मार्ग में छरीपालते चलते थे, अनेक गांवों के संघ सम्सिलित होकर सिद्धाचल के दर्शनार्थ चले। मार्ग में एकाशन १, भूमिशयन २, उभयटक प्रतिक्रमण ३, त्रिकाल देवपूजन ४, सचित्तत्यजन ५, ब्रह्मवत-पालन ६, पादचलन ७, सम्यक्त्वधरण ८ इत्यादि अनेक नियमों का पालन करते हुए पाठम और पाक्षिक के दिन एक स्थान में रहते २२ दिन में श्री शत्रुञ्जय पहुँचे । शाहश्रो आदि संवरी और भरणशाली देवादि समस्त संघ ने श्री ऋषभदेव के दर्शन कर मनुष्य जन्म सफल किया । शाह रामजी तथा शाह हाँसु को शाहश्री ने सवरी बनाया, आठ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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