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चतुर्थ-परिच्छेद ]
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नोकारसी की और सर्व गच्छों में जामी एक, मोदक एक की लाहण की, अपने गच्छ में सर्व साधर्मियों को गद्याणा एक के केवेलिये दिए, भ० देवा ने धर्म की बड़ी उन्नति को, बाद में भ० कीका दिवंगत हुआ।
सं० १६७७ में शाह तेजपाल और शाह कल्याण ने एक साथ चतुर्मास किया, वहाँ एक दिन दोनों साथ में स्थण्डिल गए, वहाँ लुम्पक के दो वेशधर मिले, उन्होंने आते ही शाहश्री को कहा – “धर्मसागर ने कहा - वह यथार्थ मिला" इसके उत्तर में शाहश्री ने कहा हमारे सम्बन्ध में तो ५-७ पाने होंगे, परन्तु तुम्हारी भक्ति तो उन्होंने बहुत की, उन्होंने कहा - कहिये क्या बात है ? तब शाहश्री ने कहा बात कहने से स्पर्धा बढ़ती है, इसलिए स्पष्ट न कहना अच्छा है, उन्होंने कहा - कहिये तो सही बात क्या है ? शाहश्री बोले - लो सुनो "प्रवचन परीक्षा" में तुम्हारे जिनदत्तसूरि तथा तरुणप्रभाचार्य को निन्हव ठहराया है, उनकी बहुत सी भूलें निकाली है, तब खरतरों ने कहा - अब रखिये, हम जानते थे कि तुम इन बातों से अपरिचित होंगे, इस पर लुंका ने कहा - अच्छा किया, इनकी पोल खोल दी।
वहाँ से मार्गशीर्ष सुदि में भ० पंचायत ने श्री शंखेश्वर का संघ निकाला।
सं० १६७८ में तथा १६७६ में शाहश्री पाटन ठहरे और वहां पर अनेक स्तवन सज्झाय, शतप्रश्नी आदि बनाये। शाह श्री कल्याण को इन्हीं दो वर्षों में खम्भात में चतुर्मासार्थ भेजा, वहां लुम्पक के साथ चर्चा हुई और लुका को निरुत्तर होना पड़ा।
सं० १६७६ थराद में तपों के घर १७ है और कडुआमति के ७०० घर हैं वहां कडुवा मन्दिर में तपा देव-वंदन करने आये, तब घर से अबोटिये पहनकर जाएँ, पूजा करने के बाद, गीतगान सुनने का मन हो तो पगड़ी उतार कर रंग मंडप में बैठकर सुने, यदि पगड़ी बन्धी रखने को इच्छा हो तो वे मंडप के बाहर बैठे यह हमेशा की व्यवस्था है । दमियान गान्धा हरजीवन का भतीजा गाँधीलालजो पगड़ी न उतार कर रंग मंडप में बैठा.
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