Book Title: Pattavali Parag Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 516
________________ - :' चतुर्थ-परिच्छेद ] [१५ ठीक नहीं करवाने का निश्चय किया, इतना ही नहीं राधनपुरी तपा साथ ने कडुवामतियों के साथ असहकार करते थे, इस प्रकार बहुत दिनों तक झगड़ा चलता रहा, तपा बहुत थे तो भी कडुवामतियों के सामने उनका कुछ भी नहीं चला, अहमदाबाद बन्दा करवाने आए, परन्तु भ० रूपजी, समरसिंह की शर्म से किसो ले बन्दा नहीं किया, बाद में थरादरी में मोरवाडा, सोहीगाँव, वाव प्रमुख सर्व गाँवों में कड्डुवामती और तपात्रों के आपस में झगड़े चले, पर कडुवामती पराजित नहीं हुए। सं० १६८० के बाद थराद का संघ दो० रत्ना, सेठ नाथा प्रमुख और राधनपुरोय महेता वीरजी प० मूला प्रमुख सर्व प्रहमदाबाद आजमखांन को मिलकर मोदी हंसराज, मोदी वधुग्रा, राधनपुरी तपा को बुलाने गए, उन्होंने सब बात सुन ली थी, इसलिए वे पहले से ही निकल गए थे और उनको वीरमगाँव में मिले, वहां मोदी हंसराज ने बहुत आदर किया। वे सब साथ मिलकर राजनगर पाए, दरमियान हाकिम प्राजमखांन की मृत्यु हो चुकी थी, अब आगे क्या करना, यह संघ के सामने प्रश्न खड़ा हुआ और सब ने मिलकर यह निश्चय किया कि अब बादशाह के पास जाना, यह बात तपा शान्तिदास के कानों पहुँची, उसने सोचा कि थराद के प्रागेवान बादशाह के पास जायेंगे तो मुझे भी बुलायेंगे। इसलिये मुझे पहले ही से अपनी व्यवस्था कर लेनी चाहिए। यह सोचकर वह राधनपुरीय तपाओं के पास जाकर बोला -- कडुवामती बादशाह के पास जायेंगे तो मुझे भी बुलायेंगे, इसलिए तुम्हारी बात रखनी हो तो मैं कहूं वैसा करो। आगे उसने कहा - मेरा कहना यह है कि तुम सब सागरगच्छ के साथ रहना कबूल करके लिखत करो और उस पर सही करो। अधिकांश राधनपुरियों ने शान्तिदास की बात मान लो और शान्तिदास ने सही ले ली और रूपजी के पास आकर बोला - मैं कुछ आपसे चीज मांगता हूँ । भणशाली ने कहा - कहिये वह क्या है ? शान्तिदास ने कहा-थराद और राधनपुरी संघ के आपस में मेल करा दो और १० रुपये केसर के मुझ से ले लो। बाद में शान्तिदास भणशाली को अपने साथ लेकर ईदलपुर गया और थराद के संघ को वहां बुलाकर उनकी सब बातें शान्तिदास सेठ ने कबूल करवाई, सेठ को वस्त्र देकर Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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