Book Title: Pattavali Parag Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 509
________________ ५०८ ] [ पट्टावली-पराग की बड़ी, प्रतिमा एक ३७ अंगुल की बड़ी सब मिलकर १५० प्रतिमाएँ जिनदास ने तथा उनके आदेश से अन्य संवरी श्रावक ने प्रतिष्ठित की, इस समय उनमें से अधिकांश प्रतिमाएँ राजनगर में घांसी की पोल में भगशाली देवा द्वारा निर्मापित जिनचेत्य में तथा उसके भूमि-घर में विराजमान हैं। सं० १६६३ में शाहश्री ने पाटन में चातुर्मास किया और वहां पर परीख लटकरण ने बिम्ब प्रवेश कराया, मेहता लालजी ने भी बिम्ब प्रबेश कराया, बहुत उत्सव हुए, शाह मावजी ने "नर्मदासुन्दरो रास" बनाया। सं० १६६४ शाहश्री ने राधनपुर में चतुर्मास किया और उसी वर्ष राजनगर से भणशाली पंचायण ने शखेश्वर का संघ निकाला, उसी वर्ष में खंभात में शाह माहवजो चतुर्मास रहे हुए थे, वहां सोनी वस्तुपाल की भार्या वैजलदे ने प्रतिष्ठा कराने का निचय किया । शाहश्री के आदेश से प्रतिष्ठा की गई, वहां दोसी शाह कल्याण शाह माहवजी के वचन से संवरी हुआ। सं० १६६५ में शाहश्री खम्भात में चतुर्मास रहे, वहां बाई वैजलदे ने १२ व्रत ग्रहण किये, शाह माहवजी राजनगर में चतुर्मासक थे, वहां भणसाली देवा ने शान्तिनाथ का बिम्ब-प्रवेश कराने के लिए शाहश्री को वहां बुलाया, शुभ दिन में बिम्बप्रवेश करवाया। सं० १६६६ में शाहश्री राजनगर में थे, शाह जीवा को संवरी किया, शाह माहवजी खम्भात में चतुर्मास थे, वहां २३ वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर शाह माहवजी दिवंगत हुए । शाह कल्याण खम्भात में थे, वहां धर्मनाथ के बिम्ब का प्रवेश कराने के लिए शाहश्री को बुलाया और मार्गशीर्ष सुदि ६ को बिम्ब-प्रवेश कराया गया। वहां के संघ ने शाह कल्याण को पढ़ाने के लिए, शाहश्री को सौंपा, इस समय पाटन निवासी परी० लटकन ने शत्रुञ्जय का संघ निकालने का निश्चय किया और खम्भात से शाहश्री को बुलाने के लिए आमन्त्रण किया। शाहश्री पाटन पाए, वहां से संघ का प्रयाण हुमा, वहां से राजनगर पाए, थराद का संघ भी अहमदाबाद आया, भरणशाली ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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