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चतुर्थ-परिच्छेद ]
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संघों के साथ शाह श्री रत्नपाल आदि संवरी शाह जिनदास, शाह पुजा, शा० खेतसिंह, शा० चौथा, शा. महावजी, शा० तेजपाल, शा० ऋषभदास, शा० पुञ्जिया, शा० गोवाल, शा. हीरजी आदि बहुतेरे संवरी साथ में थे। सर्वत्र देवपूजा विधिपूर्वक की गई । श्री संघ सिरोही पाया, वहां चैत्यवासी के साथ चर्चा शाह श्री रत्नपाल तथा संघ के प्रदेश से शाह जिनदास ने की। वहां से संघ थराद आया, वहां समस्त संघ वात्सल्य १७ हुए, ६० मन शक्कर की जलेबी प्रतिदिन उठती थी, वहां संघ ३० दिन रहा और वहां से संघ राधनपुर तथा पाटन गया, सर्वत्र संघ वात्सल्य हुए।
इस प्रकार सकुशल यात्रा करके संघपति तथा शाहश्री प्रमुख सर्व घर पाए।
सं० १६६१ में खम्भात मे चतुर्मासक किया और वहां पर शरीर में बाधा उत्पन्न हुई, शाहश्री ने जिनदास को अपने पद पर स्थापन किया और स्वयं अनशन पूर्वक स्वर्गवासी हुए।
साधर्मियों ने चन्दन प्रमुख से देहसंस्कार किया।
शाहश्री रत्नपाल १० वर्ष गृहस्थ रूप में, २१ वर्ष सामान्य संवरी के रूप में और पांच वर्ष पट्टधर के रूप में रहकर ४६ वर्ष का आयुष्य पूर्ण कर परलोकवासी हुए। ७. रत्नपाल के पट्ट पर शाह श्री जिनदास :
शाहश्री जिनदास का जन्म थराद में श्रीश्रीमाली बोहरा जयसिंह की भार्या यमुनादे की कोख से हुआ था, जिनदास शाह नरपति के वचन से संवरी बना था। ___सं० १६६२ में शाहश्री जिनदास राजनगर में चतुर्मासक किया, वहां के निवासी भणशाली देवा सुलतान का मर्जीदान था, उसने प्रतिष्ठा के मुहूर्त पर फाल्गुण वदि १ को पाने की कुकुम पत्रिका लिखकर संघ को आमंत्रण दिया था, अनेक गांवों का संघ वहां एकत्रित हुमा, श्री ऋषभदेव की प्रतिमा एक ८५ अंगुल की प्रतिमा दो ५७-५७ अंगुल
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