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[ पट्टावलो-पराग
खंभात में धर्मसागर के साथ सो० पौमसो ठा. मेरु ने मास छह तक चर्चा की, प्रतिदिन सो० पौमसो, सो० वस्तुपाल, सो० रीढ़ा, सो• लाला प्रमुख समवाय ठा० मेरू के साथ जाकर यति की प्रतिष्ठा-सम्बन्धी चर्चा करते थे, परन्तु शास्त्राधार से यति की प्रतिष्ठा प्रमाणित नहीं हुई, किन्तु श्रावक की प्रतिष्ठा सिद्ध हुई।
सं० १६१८ में शाह श्री जोवराज ने पाटन में चतुर्मास किया, वहां मन्दिर प्रमुख बहुत धर्मकार्य हुए।
सं० १.६१६ में राजनगर में चतुर्मासक किया।
सं० १६२० में खम्भात में चतुर्मासक किया, वहां बहोरा जिनदास के मन्दिर की प्रतिष्ठा की और दोसी थावर द्वारा घृतपटी में मन्दिर करवाया और वहां से अनेक मनुष्यों के साथ आबु प्रमुख को यात्राएं की।
सं० १६२१ में थराद पाकर शाहश्री ने एक श्रावक को यावज्जोव तीन द्रव्य के उपरान्त का प्रत्याख्यान कराया। ___सं० १६२२ में मोरवाड़ा प्रमुख स्थानों में विचरे ।
सं० १६२३ में पाटन में चतुर्मासक किया और वहां शा० तेजपाल को और थराद में शा० नरपति तथा चोपसीशाह को संवरी किया। तथा संघवी संग्राम ने पाबु प्रमुख का संघ निकाला।
सं० १६२५ में खम्भात में शाह रत्नपाल को संवरी किया ।
सं० १६२६ में राजनगर में शाह श्रीवन्त तथा शा० वजूड को संवरी किया और शाह काशो प्रमुख को शाहपुरा में प्रतिबोध किया।
सं० १६२८ में शाह नरपति और शाह चोकसी के भाई जिनदास को संवरी किया।
सं० १६३० में शाह श्री जीवराज राधनपुर में चतुर्मासक रहे और शाह साजन राजनगर में, वहां प्राजमखांन ने विरोध किया, उसने मनुष्य मरवाकर लटकाया, उसे देखकर शाह साजन विरक्त भाव से सोचते हैं देखो जीवधर्म के विना इस प्रकार की पीड़ा पाते हैं, परन्तु अपनी इच्छा से कोई कष्ट नहीं करता और मनुष्य जन्म निरर्थक गंवाते हैं, यह सोचकर शाह
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