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खरतरगच्छ पहावली-संग्रह
(१) इस "पट्टावली-संग्रह" में कुल ४ पट्टावलियां हैं, जिनमें प्रथम एक प्रशस्ति के रूप में है। इसमें कुल संस्कृत पद्य ११० हैं और प्राचार्य जिनहंससूरि के समय में बनी हुई है, किन्तु कर्ता का नाम नहीं दिया । जिनहंस का समय १५८२ विक्रमोय है तथा उसी वर्ष इसका निर्माण हुमा है। सामान्य मान्यता अर्वाचीन खरतरगच्छ की मान्यता के अनुसार है । जिन-जिन प्राचार्यों का समय दिया है, वह व्यवस्थित मालूम होता है ।
(२) दूसरी पट्टावली गद्य संस्कृत में है। इसका लेखक इतिहास से कोई सम्बन्ध नहीं रखता, केवल दन्तकथाओं को अव्यवस्थित रूप से लिखकर पट्टावली मान ली है। गर्दभिल्लोच्छेदक कालकाचार्य को जिननिर्वाण से ५०० वर्ष में और जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण को १८० में लिख कर लेखक ने अपने अज्ञान का नमूना बता दिया है। इसी प्रकार अन्यान्य प्राचार्यो के सम्बन्ध में भी क्रम-उत्क्रम लिख कर पट्टावली को निकम्मा बना दिया है। यह पट्टावली वि० सं० १६७४ में बनाई गई है । . (३) इसमें प्रार्यवज्र स्वामी का जन्म जिननिर्वाण से ४६६ में, दीक्षा ५०४ में, ५८४ में स्वर्गवास लिखा है । - इसमें निर्वाण से ५२५ में शत्रुञ्जय का उच्छेद लिखा है और ५७० में जावडशाह द्वारा इसका उद्धार होना लिखा है ।
प्रज्ञापनाकार कालकाचार्य ३७६ में और गर्द भिल्लोच्छेदक कालकाचार्य ४५३ में होना लिखकर - "पुनस्तदेव श्रीजिनभद्रगणिक्षमाश्रमणो जातः" ऐसा लिखकर शीलाझाचार्य को इनका शिष्य लिखा है और शीलाङ्क के
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