Book Title: Pattavali Parag Sangraha
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 492
________________ चतुर्थ-परिच्छेद [ ४६१ सं० १५६२ में वीरमगांव में डोसी तेजपाल के घर चतुर्मासक रहे, वहां शरीर में वेदना हुई परन्तु कुछ दिनों के बाद नीरोग हो गए। सं० १५६३ में महेसाने में डो० वासन के घर चतुर्मासक रहे । सं० १५६४ में कडुवाशाह पाटन गए, उस समय इनके पास जो संवरी थे उनके नाम नीचे लिखे अनुसार ये - १. शाह खीमा, २. शाह तेजा, ३. शाह कर्मसिंह, ४. शाह नाकर, ५. शाह राणा, ६. शाह कर्मण, ७. शाह शवसी, ८. शाह पुन्ना, ६. शाह धींगा, १०. शाह देपा, ११. शाह लीम्बा, १२ शाह सिधर, १३. शाह कबा, १४. शाह शबगरण, १५. शाह लुणा, १६. शाह मांगजी, १७. शाह जसवंत, १८. शाह डाहा, १९. शाह वेला, २०. शाह जीत्रा, २१. पटेल हांसा, २२. पटेल संघा, इनके अतिरिक्त शाह वीरा, १. शाह थीरपाल, २. शाह धीरु पे तीन नाडलाई में थे और शाह रामा कर्णवेधी १ खम्भात में थे। सं० १५६३ में थराद में पन्यास हरिकीर्ति दिवंगत हुए। उन दिनों शह रामा श्रावक वहां व्याख्यान वांचते थे, शाम को शाह दूदा भी व्याख्यान वांचते थे । एक दिन पाक्षिक दिन के सम्बन्ध में बात चली, रामा की बात पर शाह दूदा ने कहा - पन्यास तो यह कहते थे, तब रामा ने कहा - नहीं पन्यास यह नहीं कहते थे, इस मतभेद का निराकरण शाहश्री कडुवा को पूछकर करने का निश्चय हुआ, उस समय कडुवाशाह पाटन में थे, उनको पूछने के पहले ही कडुवाशाह के शरीर में फिर पीड़ा उत्पन्न हुई, उ होंने अपने आयुष्य को समाप्ति निकट समझकर शाह खीमा को बुलाकर अन्तिम शिक्षा देते हुए कहा - संवरी का मार्ग अच्छी तरह पालना। काडुबाशाह ने उन्हें निम्नलिखित अपनी मान्यताओं का पुनरुच्चारण करके उन्हें फिर सावचेत किया, उन्होंने कहा - १ जिन चैत्यों में पगड़ी उतार कर देव बन्दन करना । . २ प्रतिष्ठा करना भावक का कर्तव्य हैं, यति का नहीं। ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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