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[ पट्टावली-पराग
वीराणन्द, विगतदोष, राजललित, बहुचरित्र, विमलप्रज्ञ और रत्ननिधान इन १५ साधुनों को दीक्षित किया। वहीं पर वैशाखी १३ स्वाति शनिवार के दिन श्री महावीर विधिचैत्य में २४ जिनालय, सप्ततिशत, सम्मेत, नन्दीश्वर, तीर्थंकर मातृ, श्री नेमिनाथ, महावीर, चन्द्रप्रभ, शान्तिनाथ, सुधर्म स्वामी, जिनदत्तसूरि, सीमन्धर स्वामी, युगमन्धर स्वामी प्रभृति की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हुई । प्रमोदश्री गणिनी को महत्तरा पद और लक्ष्मीनिधि नाम रक्खा और ज्ञानमाला को प्रवर्तिनी - पद दिया ।
सं० १३११ के बैशाख सुदि ६ को पालनपुर में चन्द्रप्रभ चैत्य में भीमपलीय प्रासाद स्थित श्री महावीर प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई मौर पालनपुर में उपाध्याय जिनपाल का अनशन पूर्वक स्वर्गगमन ।
सं० १३१२ के वैशाख सुदि १५ को चन्द्रकीति को उपाध्याय-पद देकर चन्द्र तिलकोपाध्याय नाम रक्खा और प्रबोधचन्द्र गरिण को तथा लक्ष्मी तिलक गरिए को वाचनाचार्य पद दिये । ज्येष्ठ वदि १ को उपशमचित्त, पवित्रचित्त, प्राचारनिधि और त्रिलोकनिधि की दीक्षा हुई ।
सं० १३१३ फाल्गुन सुदि ४ जालोर में किले पर के बड़े मन्दिर में शान्तिनाथ की स्थापना की, चैत्र सुदि १४ को कनककीर्ति, विबुधराज, राजशेखर, गुरणशेखर तथा जयलक्ष्मी, कल्याणनिधि, प्रमोदलक्ष्मी, गच्छवृद्धि की दीक्षा, वैशाख वदि १ को अजितनाथ - प्रतिमा की प्रतिष्ठा की, बाद में पालनपुर में आषाढ़ सुदि १० को भावनातिलक, भरतकीर्ति की दीक्षा और भीमपल्ली में उसी दिन महावीर की स्थापना ।
सं० १३१४ माघ सुदि १३ को सुवर्णगिरि ऊपर बने हुए प्रधान मन्दिर में ध्वजारोप, महाराज उदर्यासहजी के प्रसाद से कार्य निर्विघ्न हुमा । श्राषाढ़ सुदि १० को पालनपुर में सकल हित, राजदर्शन साधु और बुद्धिसमृद्धि, ऋद्धिसुन्दरी, रत्नदृष्टि साध्वियों की दीक्षा हुई ।
सं० १३१६ माघ सुदि १ जालोर में धर्मसुन्दरी गणिनी को प्रवर्तिनी - पद, माघ सुदि ३ को पूर्णशेखर, कनककलश को प्रव्रज्या और
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